नई दिल्ली/अक्षर सत्ता/ऑनलाइन। उच्चतम न्यायालय ने कहा कि तत्काल सुनवाई के लिए मामलों का पीठ के समक्ष सीधे उल्लेख करने के बजाए शीर्ष अदालत के अधिकारियों के सामने ऐसा करने की व्यवस्था बनाई गई ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि वरिष्ठ अधिवक्ताओं को उनके कनिष्ठ सहयोगियों की तुलना में ‘‘विशेष प्राथमिकता’’ नहीं दी जाए।
प्रधान न्यायाधीश एन वी रमण, जस्टिस विनीत शरण और जस्टिस सूर्यकांत की पीठ ने अधिवक्ता प्रशांत भूषण द्वारा उक्त विषय उठाने पर यह कहा। पीठ ने कहा, ‘‘हम वरिष्ठ अधिवक्ताओं को विशेष प्राथमिकता देकर कनिष्ठ अधिवक्ताओं वकीलों को अवसरों से वंचित नहीं करना चाहते है। इसलिए यह प्रणाली बनाई गई जहां सभी लोग रजिस्ट्रार के समक्ष मामले को रख सकें।’’
कोयला घोटाले से जुड़ी जनहित याचिका के संबंध में गैर सरकारी संगठन ‘कॉमन कॉज’ की ओर से भूषण ने कहा कि मामले को पीठ के समक्ष तत्काल सूचीबद्ध करने के अनुरोध अधिकारियों को देने के बावजूद मामले महीनों तक ‘‘ठंडे बस्ते में पड़े रहते हैं’’। उन्होंने कहा, ‘‘बल्कि तत्काल का मेमो देने पर भी मामले लटके ही रहते हैं।’’
इस पर पीठ ने कहा, ‘‘पहले तो आप रजिस्ट्रार के पास जाएं और वहां मंजूरी नहीं मिलती है तो आपको मामले का पीठ के समक्ष उल्लेख करने का अधिकार स्वत: ही मिल जाता है।’’ पीठ ने कहा कि व्यवस्था यह सुनिश्चित करने के लिए बनाई गई थी कि किसी भी वकील को विशेष प्राथमिकता नहीं मिल पाए।
प्रधान न्यायाधीश रमण ने मामलों को तत्काल सूचीबद्ध करने का सीधा अनुरोध पीठ के समक्ष करने की परिपाटी को बंद कर दिया है और इसके बजाए वकीलों से कहा कि वे संबंधित अधिकारी के समक्ष अपने मामलों का उल्लेख करें।
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