आलेख : गणतंत्र की पुकार ,सुनें "हम भारत के लोग" लेखक - सुसंस्कृति परिहार


लेखक - सुसंस्कृति परिहार

यूं तो हम भारतवासी हर बार की तरह गणतंत्र दिवस मना रहे हैं लेकिन अब वह छद्म पूरी तरह उजागर हो चुका है कि उसे अपनी कथित लोकतांत्रिक सरकार से कितना बड़ा ख़तरा है। बाहर के ख़तरों से निपटना जितना आसान होता है, उससे कई गुना जटिल और मुश्किल काम है। आज के इस बुरे समय में अपने गणतंत्र को बचाना। कहते हैं जब रक्षक ही भक्षक हो जाए तो उससे बचना और बचाना टेढ़ी खीर होता है।

ऐसे वक्त एक वरिष्ठ युवक राहुल गांधी ने देश को बचाने का ज़िंदादिली से जो बीड़ा उठाया है, वह काबिले गौर है। लोकतांत्रिक व्यवस्था के अंदर जिस तरह नफरत का माहौल पैदा किया जा रहा है, वह  भारतीय संस्कृति के खिलाफ है। इसकी अपनी पहचान रही है। उसकी वापसी और भाईचारे की गंगा जमुनी तहज़ीब को कायम रखने जारी भारत जोड़ो पदयात्रा ने दिखा दिया है कि देश को एक बार फिर सही राह दिखाने वाला एक नया गांधी मिल चुका है। उन्होंने यात्रा के दौरान भी महसूस किया कि भारतीयता आज भी जन जन में व्याप्त है। उसे दहशत में रखने सरकार ने नफरत के बाजार को गर्म किया है और हमारी तहज़ीब को चोट पहुंचाने का बीड़ा उठाया हुआ है।

दहशतज़दा इस माहौल में भी जिसने अपने पिता और दादी को बम और गोलियों से छलनी होते देखा हो, निडरता के संदेश के साथ अपने चंद साथियों के साथ नफरत के बाजार में मोहब्बत की चलती-फिरती दूकान लिए जिस तरह चल रहा है। उसने भारतीयों में अटूट विश्वास जगाया है। सनातन संस्कृति की भी यही मूल भावना रही है। हम सबके प्रिय बापू ने भी इस विचार को लेकर ही अंग्रेजों के मानस को बदला था।बापू के हत्यारों ने इस देश में नफ़रत की पैदाइश सन 1925 के बाद ही शुरू कर दी थी। बाद में जिन्ना ने भी विभाजन की बात की थी। विभाजन के बाद  संघ की मंशा थी कि देश से तमाम मुस्लिम पाकिस्तान चले जायेंगे देश में सिर्फ हिंदू बचेंगे। गांधी और जवाहरलाल नेहरू जी के कारण जब ऐसा नहीं हुआ तो उन्होंने गांधी की हत्या कर एक बार फिर यह कोशिश की लेकिन भारतीय संस्कृति के उपासकों ने ऐसा नहीं होने दिया। देश नेहरू जी के नेतृत्व में सुदृढ़ और मज़बूत हुआ। संविधान निर्माण के बाद तो भारत को एक सही दिशा मिल गई। सन् 2013 तक कई प्रधानमंत्री बने लेकिन किसी ने संविधान की मूल लोकतांत्रिक भावना का कभी अनादर नहीं किया सिवाय आपातकाल की घटना को छोड़कर।

लेकिन 2014 के चुनाव में गांधी विरोधी विचारधारा के लोगों ने झूठ और लफ्फाजी के साथ हिंदुत्व का नया नारा देकर ध्रुवीकरण के ज़रिए, जिस तरह देश की सत्ता हथिया ली वह ग़लत हुआ। वे आज तक काबिज है। इन्होंने सबसे पहले मीडिया को अपने विज्ञापनों के जाल में फंसाया गुलाम बनाया और उनके मालिकों को खरीद लिया। जिससे जनता की आवाज पर विराम लग गया। इसी क्रम में बुद्धिजीवियों की आवाज़ को दफ़न करने उन्हें गोलियों से उड़ाया, सामाजिक कार्यकर्ताओं को जो अधिकारों के प्रति लोगों को सजग करते थे, झूठे इल्ज़ाम लगाकर जेल भेजा। उधर कांग्रेस के नेताओं के साथ ही उन सांसदों को परेशान किया गया जो सरकार के खिलाफ बात करते उनको ईडी सीबीआई वगैरह का भय दिखाकर या करोड़ों देकर अपने साथ जोड़ा। चंद विपक्षी सांसदों की आवाज़ भी सदन मे अनसुनी की और अपने कथित बहुमत के दम पर देश की बहुमूल्य संपदा को अपने दो पूंजीपति व्यवसायियों को बेच दीं। बड़ी संख्या में नौकरियां देने वाले संस्थान इन यारों के पास पहुंचा दिए गए। वही, तमाम ज़रूरी उपभोक्ता सामग्री छोटे-छोटे व्यापारियों से छीनकर कारपोरेट को सौंप दी गई। पेट्रोल, गैस, डीजल, बिजली जैसी ज़रूरी चीज़ों के साथ स्वास्थ्य,शिक्षा के साथ अब फौज पर इनका नियंत्रण होने वाला है। किसान की मेहनत के अनाज का मूल्य उन्हें कितना कम मिल रहा है उनकी लागत मूल्य को दुगुना तिगुना कर दिया गया। उनके एक साल चले आंदोलन को जिस तरह का सिला मिला, उसकी अनदेखी भारी पड़ने वाली है। चुनाव काल में मुफ्त अनाज देकर आगत में जो तस्वीर सामने आने वाली है वह बहुत भयावह है। उधर महिलाओं का यौन शोषण करने वाले और अन्प अपराधी तत्व सरकार से सम्मानित हो रहे हैं। जिन्हें देखकर घिन आती है। कुलदीप सिंह सेंगर, चिन्मयानंद और बृजभूषण सिंह टेनी ऐसे ही नाम है।जिन के कृत्यों पर सरकार अपने को गौरवान्वित महसूस करती है। संविधान की ऐसी फजीहत आम आदमी का दम तोड़ रही है।

सर्वविदित है कि भारत का संविधान बदलने वाला है। जिसकी तैयारी जोर-शोर से चल रही है। सूत्र बता रहे हैं कि मनुवादी संविधान को आंशिक परिवर्तन के साथ लागू किया जाने वाला है। देश के प्रत्येक नागरिक को आगे वोट देने का अधिकार नहीं रहेगा। यह अधिकार सिर्फ सवर्ण हिंदुओं को मिलेगा। शिक्षा भी गुरुकुल का रुख ले लेगी यानि सिर्फ दो जाति ब्राह्मण और क्षत्रिय ही इसके पात्र होंगे। सेंट्रल विस्टा पर भगवा लहराएगा। वगैरह-वगैरह। बहुत कुछ नज़र भी आने लगा है।दीगर धर्मिवलंबियों के साथ इनका अंदरूनी व्यवहार यही बता रहा है।

इसलिए बहुत ज़रूरी है मनुवादी संविधान आने से पहले जान लें हमारे संविधान ने हमें जो दिया है, वह हमारी कितनी बड़ी ताकत है भारतीय संविधान की प्रस्तावना में  साफ लिखा है  --"हम भारत के लोग,भारत को एक संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न समाजवादी, पंथ निरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, विचारअभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त कराने के लिए  तथा उन सब में व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखंडता सुनिश्चित करने वाली  बंधुता बढ़ाने केे लिए दृढ़ संकल्पित है ...।" ये प्रस्तावना नागरिकों को आपसी भाईचारा व बंधुत्व के माध्यम से व्यक्ति के सम्मान तथा देश की एकता और अखंडता सुनिश्चित करने का संदेश देती है। जनता का जनता के लिए जनता द्वारा शासन इस लोकतांत्रिक व्यवस्था में निहित है।आज हम भारत के लोग अपने तमाम अधिकार भारत सरकार के दो कारपोरेट साथियों को, अच्छे दिनों के प्रलोभन में आंख मूंदकर सौंपते जा रहे हैं। तानाशाही हाबी होती जा रही है। बताइए क्या आपके पास अपनी बात रखने का अधिकार है, शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और जीवन जीने का अधिकार है? मौलिक अधिकारों को बुरी तरह कुचला जा रहा है। लोकतांत्रिक शासन में विपक्ष के नेता को केबिनेट मंत्री का दर्जा प्राप्त है आज क्या हालत है इसकी। कांग्रेस मुक्त भारत की अवधारणा के साथ जो दल सरकार बनाए हुए है यह सोच पूरी तरह असंवेधानिक है। यहां तक कि संविधान में उल्लिखित स्वायत्त संस्थाएं चुनाव आयोग ,कार्यपालिका , न्यायपालिका को भी अपने शिकंजे में बुरी तरह जकड़ लिया गया है। हत्यारे सम्मानित हो रहे हैं और अधिकारों के लिए लड़ने वाले सरकार के विरुद्ध बोलने वाले सजा झेल रहे हैं। हर नागरिक डरा हुआ है। ऐसे में राहुल गांधी की निडरता ने लाखों लोग के बीच जो ऊर्जा जागृत की है, उससे लगता है दहशतज़दा लोग भले वो मीडिया के हों, सरकारी तंत्र के हों, आमजन हों सबके चेहरों पर चमक दिखाई दे रही है। यह चमक संकेत करती है कि घटाटोप अंधेरे से निजात पाई जा सकती है।

आइए, गणतंत्र की इस पावन बेला में हम सब अपने संविधान के प्रति संकल्पित और प्रतिबद्ध होकर उत्साहपूर्वक गणतंत्र दिवस मनाएं। याद आता है गोडसे का गांधी को नमन करते हुए गोलियों से भून देना। संविधान और संसद को नमन करने वाले लोग भी खतरनाक है। इन पर कतई विश्वास ना करें। संविधान की रक्षा हम भारत के लोगों की जिम्मेदारी है।

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