जबलपुर। शहर के घमापुर थाना अंतर्गत सिद्धबाबा क्षेत्र में एक दर्दनाक घटना सामने आई है, जहां मां और बेटे की फांसी पर लटकी हुई लाशें उनके ही घर के अंदर मिलीं। इस घटना ने इलाके में सनसनी फैला दी है। पुलिस को जैसे ही इस त्रासदी की सूचना मिली, वे तत्काल मौके पर पहुंची। वहां पाया गया कि मकान का मुख्य द्वार भीतर से बंद था। स्थानीय निवासियों ने बताया कि मृतका अपने छोटे पुत्र के साथ अकेली रहती थी, जबकि बड़ा बेटा शहर के आधारताल इलाके में निवास करता है।
मौके पर पहुंची पुलिस ने जब बड़े बेटे को बुलवाया और दरवाजा तोड़ा, तो मां और बेटे को अलग-अलग कमरों में फंदे से झूलते हुए पाया। इस हृदयविदारक दृश्य के बाद पुलिस ने दोनों शवों को नीचे उतारा और आवश्यक कानूनी प्रक्रिया के तहत पंचनामा तैयार कर मामला दर्ज कर लिया। घटना की गंभीरता को देखते हुए गहन जांच शुरू कर दी गई है।
प्राप्त जानकारी के अनुसार, मृतका की पहचान माया रैकवार (60 वर्ष) और उनके छोटे पुत्र अजय रैकवार (36 वर्ष) के रूप में हुई है। माया अपने छोटे बेटे के साथ किराए के मकान में निवास करती थीं, जबकि उनका बड़ा बेटा विनोद रैकवार अपने परिवार सहित आधारताल क्षेत्र में रहता था। अजय दिहाड़ी मजदूरी कर परिवार का भरण-पोषण करता था, वहीं उनकी वृद्ध मां घर पर ही रहती थीं।
मंगलवार सुबह विनोद ने अपने छोटे भाई अजय को फोन किया, लेकिन उसने कॉल रिसीव नहीं किया। कई बार प्रयास करने के बावजूद जब फोन नहीं उठा, तो विनोद अपने काम पर चला गया। दोपहर लगभग 12 बजे पड़ोसियों ने संदेह जताया कि सुबह से ही मां-बेटे घर से बाहर नहीं निकले हैं और दरवाजा भीतर से बंद है। इस सूचना पर पुलिस तत्काल मौके पर पहुंची और दरवाजा तोड़कर भीतर प्रवेश किया, जहां यह हृदयविदारक दृश्य सामने आया।
घटनास्थल पर नहीं मिला कोई सुसाइड नोट
घमापुर थाना प्रभारी सतीश अंधवान ने जानकारी दी कि मृतका माया पिछले कुछ वर्षों से अपने छोटे पुत्र अजय के साथ इस मकान में रह रही थीं, जबकि उनका बड़ा बेटा विनोद दो वर्ष पूर्व अपने परिवार के साथ अलग किराए के मकान में शिफ्ट हो गया था। पुलिस को घटनास्थल से कोई सुसाइड नोट बरामद नहीं हुआ है, जिससे आत्महत्या के कारणों पर संदेह बना हुआ है।
फिलहाल, पुलिस ने मर्ग कायम कर दोनों शवों को पोस्टमार्टम के लिए मेडिकल कॉलेज भेज दिया है और मामले की विस्तृत जांच जारी है। पुलिस इस बात की भी पड़ताल कर रही है कि कहीं इस घटना के पीछे कोई सामाजिक, आर्थिक या पारिवारिक कारण तो नहीं है।
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