पटना। बिहार की राजधानी पटना स्थित सिटी सेंटर मॉल के आईनॉक्स थिएटर में शनिवार को कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने समाज सुधारक ज्योतिबा फुले पर आधारित फिल्म ‘फुले’ देखी। उनके साथ करीब 400 सामाजिक कार्यकर्ता भी इस शो में शामिल हुए। फिल्म देखने के दौरान जहां अंदर सिनेमा हॉल में एक शांत माहौल था, वहीं बाहर कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने उग्र प्रदर्शन किया और प्रशासन के खिलाफ नारेबाजी की।
कार्यकर्ताओं को रोके जाने पर हंगामा
हंगामे की वजह यह थी कि बड़ी संख्या में कांग्रेस कार्यकर्ताओं को, पास होने के बावजूद, थिएटर में प्रवेश नहीं दिया गया। प्रदर्शन कर रहे कार्यकर्ताओं ने आरोप लगाया कि उन्हें राहुल गांधी के साथ फिल्म देखने की अनुमति नहीं दी गई, जबकि उनके पास फोटोयुक्त विशेष पास थे, जिनमें राहुल गांधी को "सामाजिक न्याय का नायक" बताया गया था।
पुलिस और सरकार के खिलाफ नारेबाजी
नाराज कार्यकर्ताओं ने "पुलिस मुर्दाबाद", "नीतीश सरकार मुर्दाबाद" के नारे लगाते हुए कहा कि जब भाजपा पूरे हॉल बुक कर फिल्मों का प्रदर्शन कर सकती है, तो कांग्रेस को क्यों रोका जा रहा है? उन्होंने इसे "सरकार की डर की राजनीति" करार दिया।
टिकट और पास को लेकर असमंजस
फिल्म के लिए 2.20 बजे से शुरू होने वाले शो के लिए कुल 400 टिकट बुक किए गए थे। विशेष पास बिहार कांग्रेस की ओर से वितरित किए गए, जिनमें प्रदेश अध्यक्ष राजेश राम का फोटो भी था। हालांकि, फिल्म देखने की अनुमति सिर्फ चुनिंदा नेताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं को मिली, जिससे कार्यकर्ताओं में नाराजगी फैल गई।
"शिक्षा न्याय संवाद" अभियान के तहत हुआ आयोजन
राहुल गांधी का यह दौरा कांग्रेस के राज्यव्यापी अभियान "शिक्षा न्याय संवाद" के तहत हुआ, जिसके अंतर्गत बिहार के 75 स्थानों पर कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं। इसी क्रम में राहुल गांधी ने दरभंगा और पटना का दौरा किया।
दरभंगा में भी प्रशासन से टकराव
दरभंगा में प्रशासन की अनुमति न मिलने के बावजूद सभा आयोजित करने पर राहुल गांधी ने कहा, "जैसे ये हमें यहां आने से नहीं रोक पाए, वैसे ही आगे भी नहीं रोक पाएंगे। जब तक प्राइवेट संस्थानों में आरक्षण लागू नहीं होता, हम लड़ते रहेंगे।"
राहुल गांधी की तीन प्रमुख मांगें
राहुल गांधी ने बिहार दौरे के दौरान तीन अहम मांगें दोहराईं:
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जातिगत जनगणना करवाई जाए
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प्राइवेट शिक्षण संस्थानों में आरक्षण लागू हो
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एससी-एसटी सब-प्लान प्रभावी ढंग से लागू किया जाए
इस पूरे घटनाक्रम ने जहां एक ओर ‘फुले’ फिल्म को सामाजिक न्याय की बहस के केंद्र में ला दिया है, वहीं दूसरी ओर राजनीतिक टकराव और कार्यकर्ताओं की उपेक्षा ने कांग्रेस के अंदरूनी संगठनात्मक प्रबंधन पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं।
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