नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने मिर्गी रोग को स्वास्थ्य बीमा पॉलिसियों से स्थायी रूप से बाहर रखने के मामले में गंभीर रुख अपनाते हुए भारतीय बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण (IRDA) को नोटिस जारी किया है। यह नोटिस एक जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान जारी किया गया, जिसमें मिर्गी पीड़ितों के लिए बीमा कवरेज की मांग की गई है।
न्यायमूर्ति बी. वी. नागरत्ना और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की खंडपीठ ने यह आदेश IRDA के 22 जुलाई 2020 के मास्टर सर्कुलर के संदर्भ में दिया, जिसमें स्वास्थ्य बीमा की मानक पॉलिसियों में मिर्गी को स्थायी रूप से अपवर्जित (Excluded) कर दिया गया था।
याचिका में उठाए गए मुद्दे
संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत दाखिल इस याचिका में कहा गया है कि:
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मिर्गी को बीमा दायरे से बाहर करना भेदभावपूर्ण है और यह अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) तथा अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) का उल्लंघन करता है।
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यह निर्णय अवैज्ञानिक और तर्कहीन है और मिर्गी से जुड़े पुराने सामाजिक पूर्वाग्रहों और गलत धारणाओं पर आधारित है।
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मिर्गी से पीड़ित व्यक्तियों को बीमा लाभ से वंचित करना उन्हें समुचित चिकित्सा सुविधा प्राप्त करने से रोकता है, जो कि एक मौलिक अधिकार है।
याचिकाकर्ता की दलील
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि मिर्गी के इलाज में अब महत्वपूर्ण प्रगति हो चुकी है और लगभग 70% मरीज नियमित एंटी-सीज़र दवाओं की मदद से पूर्ण रूप से दौरे से मुक्त हो सकते हैं। इसके बावजूद बीमा कंपनियों द्वारा इसे गंभीर और अपवर्जित बीमारी मानना न्यायोचित नहीं है।
आगे की प्रक्रिया
शीर्ष अदालत ने IRDA से जवाब तलब करते हुए यह स्पष्ट किया है कि वह इस मुद्दे पर विस्तृत सुनवाई करेगा और बीमा पॉलिसियों में समावेशन को लेकर संतुलित दृष्टिकोण अपनाया जाना चाहिए।
यह मामला न केवल स्वास्थ्य सेवा की समान पहुंच से जुड़ा है, बल्कि यह दर्शाता है कि मानसिक और तंत्रिका संबंधी बीमारियों को लेकर हमारी नीतियों और नियमों में अभी भी कई सुधारों की आवश्यकता है। सुप्रीम कोर्ट की यह पहल मिर्गी से जूझ रहे लाखों मरीजों के लिए नई उम्मीद का संकेत है।
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