🔻 जनसंख्या नहीं, असली संकट है अधूरी प्रजनन इच्छाएं
UNFPA की इस रिपोर्ट का शीर्षक ही बेहद साफ़ संकेत देता है – “वास्तविक प्रजनन संकट”। रिपोर्ट के अनुसार, भारत की कुल प्रजनन दर गिरकर 1.9 प्रति महिला हो गई है, जो प्रतिस्थापन स्तर 2.1 से कम है। यानी औसतन हर महिला अब दो से कम बच्चे पैदा कर रही है।
👉 यह एक संकेत है कि जनसंख्या वृद्धि दर धीरे-धीरे स्थिर हो रही है, लेकिन इसके पीछे लाखों लोगों की अधूरी प्रजनन इच्छाएं हैं — यानी वे चाहकर भी संतान नहीं प्राप्त कर पा रहे।
🧒 युवा भारत अब भी बना है ताकत
रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि जनसंख्या में गिरावट के बावजूद भारत की युवा शक्ति अब भी मजबूत बनी हुई है:
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0-14 वर्ष के बच्चे: 24%
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10-19 वर्ष के किशोर: 17%
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10-24 वर्ष के युवा: 26%
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15-64 वर्ष की कार्यशील जनसंख्या: 68%
🔸 यानी भारत में अभी भी एक विशाल 'डेमोग्राफिक डिविडेंड' मौजूद है, बशर्ते इसे रोजगार, शिक्षा और स्वास्थ्य नीति से समर्थन मिले।
📊 तेजी से बदल रही है जनसंख्या की तस्वीर
संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट बताती है कि भारत को अब मध्यम आय वर्ग के देशों में गिना जा रहा है, और यहां की जनसंख्या अब दोगुनी होने में करीब 79 वर्ष का समय लेगी। यह पहले की तुलना में धीमी वृद्धि का संकेत है।
🧬 रिपोर्ट का मूल संदेश: अधिकार आधारित प्रजनन नीति जरूरी
UNFPA का कहना है कि आज का सबसे बड़ा संकट "कम या ज्यादा जनसंख्या" नहीं, बल्कि यह है कि बहुत से लोग अपने परिवार नियोजन और प्रजनन के फैसलों पर अधिकारपूर्वक निर्णय नहीं ले पा रहे हैं।
इसका समाधान है:
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बेहतर प्रजनन स्वास्थ्य सेवाएं
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गर्भनिरोधक तक समान पहुंच
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शिक्षा और जागरूकता
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