मुंबई आतंकी हमले के आरोपी तहव्वुर राणा की न्यायिक हिरासत 9 जुलाई तक बढ़ी, प्रत्यर्पण की तैयारी तेज

नई दिल्ली। 26/11 मुंबई आतंकी हमलों के अहम आरोपी और पाकिस्तानी मूल के कनाडाई व्यवसायी तहव्वुर हुसैन राणा की न्यायिक हिरासत को दिल्ली की एक विशेष अदालत ने शुक्रवार को 9 जुलाई 2025 तक बढ़ा दिया है। राणा को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से अदालत में पेश किया गया, जहां विशेष न्यायाधीश चंदर जीत सिंह ने हिरासत बढ़ाने का आदेश सुनाया।


तहव्वुर राणा का नाम उस जघन्य आतंकी हमले में प्रमुख साजिशकर्ताओं में शामिल रहा है, जिसमें करीब 166 निर्दोष लोगों की जान गई थी। इस हमले को अंजाम देने वाले 10 पाकिस्तानी आतंकवादी समुद्री मार्ग से मुंबई पहुंचे थे और उन्होंने रेलवे स्टेशन, ताज व ओबेरॉय होटल समेत यहूदी केंद्र पर बर्बर हमला किया था।

राणा को अमेरिका में गिरफ्तार किए जाने के बाद भारत सरकार ने उसके प्रत्यर्पण की मांग की थी। इस वर्ष की शुरुआत में अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने उसकी प्रत्यर्पण के खिलाफ दायर अंतिम याचिका को खारिज कर दिया, जिससे अब उसे भारत लाकर सीधे आतंकी हमलों के मामले में कानूनी कार्रवाई का सामना कराना संभव हो गया है।

राणा का हेडली से नाता, आतंकी साजिश की परतें

जांच एजेंसियों के अनुसार, राणा 26/11 हमले के मुख्य साजिशकर्ता डेविड कोलमैन हेडली उर्फ दाऊद गिलानी का करीबी सहयोगी रहा है। हेडली ने भारत में कई बार यात्रा कर आतंकी हमलों के लिए रेकी की थी और उसने इस भयावह साजिश को अंजाम देने में राणा की भूमिका को भी उजागर किया था। राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) की रिपोर्ट के अनुसार, राणा ने हमलों के लिए आवश्यक रसद और रणनीतिक सहायता प्रदान की थी।

परिवार से बातचीत की मांग पर सुनवाई 9 जून को

राणा ने अदालत से अपने परिवार के सदस्यों से बात करने की अनुमति मांगी थी, जिस पर सुनवाई अब 9 जून को होगी। इससे पहले अदालत ने उसकी ऐसी एक अर्जी खारिज कर दी थी। फिलहाल राणा तिहाड़ जेल में बंद है और जेल प्रशासन को अदालत ने उसकी अर्जी पर जवाब दाखिल करने की अनुमति दे दी है। एनआईए ने भी इस मामले में अपना पक्ष अदालत के समक्ष रखा है।

भारत लाने की उलटी गिनती शुरू?

राणा की न्यायिक हिरासत की अवधि बढ़ाए जाने के साथ ही यह संकेत मिल रहे हैं कि भारत सरकार उसकी जल्द से जल्द प्रत्यर्पण प्रक्रिया पूरी करना चाहती है। इस मामले को लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी निगाहें टिकी हैं, क्योंकि यह भारत के लिए न केवल आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में एक बड़ी उपलब्धि होगी, बल्कि 26/11 हमलों के पीड़ितों को न्याय की दिशा में एक बड़ा कदम भी साबित हो सकता है।

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