⚖️ क्या कहा सुप्रीम कोर्ट ने?
न्यायमूर्ति संदीप मेहता और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की खंडपीठ ने साइबर धोखाधड़ी के एक मामले में आरोपी अभिजीत सिंह द्वारा दायर निवारक निरोध के खिलाफ याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की।
न्यायमूर्ति मेहता ने कहा:
“यह राज्य की ओर से आने वाली एक अच्छी प्रवृत्ति है कि साइबर अपराधियों के खिलाफ निवारक निरोध कानूनों का इस्तेमाल किया जा रहा है। यह एक बहुत ही स्वागत योग्य दृष्टिकोण है। सामान्य आपराधिक कानून इन अपराधों पर प्रभावी नहीं हो पा रहे हैं।”
🕵️ क्या है मामला?
पंजाब मूल के और वर्तमान में नई दिल्ली निवासी अभिजीत सिंह को तमिलनाडु के थेनी जिले की साइबर क्राइम पुलिस ने 84.5 लाख रुपये की धोखाधड़ी के मामले में 25 जुलाई 2024 को गिरफ्तार किया था।
शिकायतकर्ता भानुमति ने आरोप लगाया था कि उन्होंने मेसर्स क्रिएटिव क्राफ्ट के नाम पर संचालित खाते में 12.14 लाख रुपये ट्रांसफर किए थे। जांच में यह सामने आया कि सिंह ने अपने परिवार के नाम पर कई बैंक खाते खोलकर धन को रूट किया और चार फर्जी कंपनियां बनाई थीं।
📑 हिरासत आदेश और कानूनी प्रक्रिया
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23 अगस्त 2024: जिला कलेक्टर ने सिंह के खिलाफ निवारक हिरासत आदेश जारी किया
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25 सितंबर 2024: सलाहकार बोर्ड ने आदेश को वैध माना
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09 नवंबर 2024: राज्य सरकार ने 12 महीने की हिरासत की पुष्टि की
याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि:
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सिंह का कोई पूर्व आपराधिक रिकॉर्ड नहीं है
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यह एक एकल घटना थी, जिससे सार्वजनिक व्यवस्था प्रभावित नहीं हुई
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हिरासत संविधान के अनुच्छेद 22(5) का उल्लंघन है
🏛️ सुप्रीम कोर्ट का जवाब
न्यायालय ने इन तर्कों को खारिज करते हुए कहा:
“यह राज्य का विवेक है कि वह कितनी अवधि के लिए निवारक हिरासत दे। यदि हिरासत का कोई आधार नहीं है तो पूरा आदेश रद्द हो सकता है, लेकिन अवधि कम नहीं की जा सकती।”
📅 अगली सुनवाई
📌 क्यों है यह मामला महत्वपूर्ण?
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यह पहली बार है जब किसी राज्य ने तमिलनाडु खतरनाक गतिविधि रोकथाम अधिनियम, 1982 का प्रयोग साइबर अपराधियों के खिलाफ किया है।
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सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी अन्य राज्यों को भी साइबर अपराध के विरुद्ध सख्त कदम उठाने के लिए प्रेरित कर सकती है।
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यह फैसला डिजिटल सुरक्षा और नागरिकों के वित्तीय हितों की रक्षा की दिशा में एक मील का पत्थर साबित हो सकता है।
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