कार्यशाला : शादी से पहले करवाएं थैलेसीमिया और सिकलसेल की जांच

विश्व सिकलसेल दिवस पर जबलपुर में जागरूकता कार्यशाला आयोजित

जबलपुर। विश्व सिकलसेल दिवस के अवसर पर थैलेसीमिया जन जागरण समिति, मध्यप्रदेश और नेताजी सुभाष चंद्र बोस मेडिकल कॉलेज, जबलपुर के संयुक्त तत्वावधान में एक महत्वपूर्ण स्वास्थ्य जागरूकता कार्यशाला का आयोजन किया गया। इस कार्यशाला का उद्देश्य था – थैलेसीमिया और सिकलसेल जैसी गंभीर लेकिन रोकी जा सकने वाली बीमारियों के प्रति जनजागरण फैलाना और समाज को विवाह पूर्व जांच की महत्ता समझाना।


कार्यशाला में उपस्थित विशेषज्ञ चिकित्सकों ने बताया कि जिस प्रकार विवाह से पहले कुंडली मिलान पारंपरिक रूप से आवश्यक माना जाता है, उसी प्रकार थैलेसीमिया और सिकलसेल की जांच भी विवाह से पहले कराना अनिवार्य होना चाहिए। यह कदम भविष्य की पीढ़ियों को इन बीमारियों से बचाने में निर्णायक साबित हो सकता है।


क्या हैं थैलेसीमिया और सिकलसेल?

थैलेसीमिया:

यह एक आनुवांशिक रक्त विकार है जिसमें शरीर पर्याप्त मात्रा में हीमोग्लोबिन नहीं बना पाता। इसके दो मुख्य प्रकार हैं:

  • थैलेसीमिया माइनर: लक्षण नहीं होते लेकिन व्यक्ति जीन वाहक होता है।

  • थैलेसीमिया मेजर: रोगी को जीवनभर हर कुछ दिनों में रक्त चढ़ाने की आवश्यकता होती है।

सिकलसेल एनीमिया:

इस बीमारी में लाल रक्त कोशिकाएं अर्धचंद्राकार (सिकल शेप) की हो जाती हैं, जिससे रक्त प्रवाह अवरुद्ध हो सकता है और शरीर के विभिन्न हिस्सों में दर्द, सूजन और अंग क्षति की आशंका रहती है।


शादी से पहले जांच है बचाव का मजबूत उपाय

विशेषज्ञों ने कार्यशाला में बताया कि विवाह के पहले एचबीए2 टेस्ट और एचबीएस टेस्ट अवश्य कराना चाहिए। ये टेस्ट यह स्पष्ट कर देते हैं कि युवक या युवती थैलेसीमिया या सिकलसेल माइनर हैं या नहीं।

अगर दोनों पार्टनर माइनर हों तो खतरा अधिक:

यदि दोनों युवक-युवती थैलेसीमिया माइनर या सिकलसेल माइनर हैं, तो उनकी संतान में गंभीर थैलेसीमिया मेजर या सिकलसेल रोग की संभावना बहुत अधिक होती है।

गर्भधारण के बाद CVS जांच अनिवार्य:

यदि माइनर पार्टनर का विवाह हो गया है, तो गर्भधारण के 3 महीने के भीतर 'कोरियोनिक विलस सैंपलिंग (CVS)' टेस्ट करवाना अनिवार्य होता है। इस टेस्ट से भ्रूण में बीमारी की स्थिति (नॉर्मल, माइनर या मेजर) का पता लगाया जा सकता है।


जांच के माध्यम से रोका जा सकता है रोग का प्रसार

चिकित्सकों ने ज़ोर देते हुए कहा – "जांच करवाओ, बच्चों को बीमारी से बचाओ"। यह एकमात्र उपाय है जिससे इन बीमारियों की चेन को रोका जा सकता है।

महत्वपूर्ण जांचें:

  • थैलेसीमिया के लिए: HBA2 टेस्ट

  • सिकलसेल के लिए: HBS टेस्ट

  • गर्भधारण के बाद: CVS टेस्ट


कार्यशाला में विशेषज्ञों की रही भागीदारी

इस अवसर पर कई वरिष्ठ चिकित्सक और सामाजिक कार्यकर्ता मौजूद रहे जिन्होंने इस संवेदनशील विषय पर गहराई से प्रकाश डाला। कार्यशाला में प्रमुख रूप से शामिल रहे:

  • डॉ. नवनीत सक्सेना (डीन, मेडिकल कॉलेज)

  • डॉ. संजय मिश्रा (ज्वाइंट डायरेक्टर, सीएमएचओ)

  • डॉ. अरविंद्र शर्मा (मेडिकल अधीक्षक)

  • डॉ. श्वेता पाठक (बीएमटी इंचार्ज)

  • डॉ. मोनिका लाजरस (प्रमुख, पीडियाट्रिक विभाग)

  • डॉ. विद्या, डॉ. रविन्द्र छाबड़ा (ICMR), डॉ. रविन्द्र विश्नोई

कार्यशाला को सफल बनाने में निम्न सामाजिक कार्यकर्ताओं का सराहनीय योगदान रहा:
विकास शुक्ला (प्रदेश अध्यक्ष, समिति), अजय घोष (संरक्षक), सरबजीत सिंह नारंग, डॉ. संजय असाटी, मोहित दुबे, मोहित संघी, डॉ. ऋषि सागर, अमर पटेल, नीलेश गुप्ता, अभिषेक खुरासिया, मो. हसन बैग, दीक्षा चौरसिया


क्या कहती है समाज की भूमिका?

सिर्फ सरकार या मेडिकल संस्थानों की कोशिशें काफी नहीं हैं। समाज को चाहिए कि वह इन बीमारियों के प्रति सजग और संवेदनशील हो।

समाज में व्यापक प्रचार-प्रसार ज़रूरी:

  • स्कूलों, कॉलेजों में जनजागरूकता कार्यक्रम हों।

  • विवाह पंजीकरण के समय थैलेसीमिया/सिकलसेल टेस्ट की अनिवार्यता लागू हो।

  • मीडिया के माध्यम से विषय को सामान्य चर्चा में लाया जाए।

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