इस दौरान भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा बीमार पड़ जाते हैं, उन्हें बुखार आता है, औषधियां दी जाती हैं और गर्भगृह को आम भक्तों के लिए बंद कर दिया जाता है।
🕉️ बुखार क्यों आता है भगवान जगन्नाथ को?
हर वर्ष आषाढ़ मास की स्नान पूर्णिमा को भगवान जगन्नाथ सहित तीनों भाई-बहनों को 108 कलशों के शीतल जल से स्नान कराया जाता है। इस महा-स्नान को ‘स्नान यात्रा’ कहा जाता है।
मान्यता है कि इस ठंडे जल स्नान के बाद तीनों देवी-देवताओं को बुखार हो जाता है। इसी कारण उन्हें आम भक्तों से दूर लाकर मंदिर के भीतर बने ‘अनसरा गृह’ में विश्राम कराया जाता है।
🩺 भगवान का इलाज और सेवा व्यवस्था
-
अनसरा काल लगभग 15 दिनों का होता है, जिसमें भगवान विश्राम करते हैं।
-
इस दौरान ‘दासमुख वैद्य’ नामक राज वैद्य भगवान के उपचार के लिए 17 प्रकार की औषधियों से बना काढ़ा (नबटोल) तैयार करते हैं।
-
भगवान को हल्का, सुपाच्य भोजन दिया जाता है।
-
भगवान की सेवा में लगे सेवक भी नियमपूर्वक उपवास रखते हैं और औषधीय प्रक्रिया का पालन करते हैं।
🚪 क्यों बंद हो जाता है गर्भगृह?
अनसरा काल में भगवान को सार्वजनिक दर्शन से दूर रखा जाता है।
-
गर्भगृह को बंद कर दिया जाता है।
-
श्रद्धालु केवल ‘पत्ता चित्र’ (परंपरागत चित्रकलाओं) के माध्यम से भगवान के दर्शन कर पाते हैं।
🛏️ भगवान करवट क्यों बदलते हैं?
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान केवल विश्राम नहीं करते, बल्कि करवट भी बदलते हैं।
-
मूर्तियों को विश्राम अवस्था में रखा जाता है।
-
सेवक समय-समय पर उनकी करवट बदलते हैं, जिससे यह प्रतीक बने कि भगवान भी मानवों की तरह व्यवहार करते हैं।
🌸 नवयौवन दर्शन और रथयात्रा की शुरुआत
अनसरा की समाप्ति पर, भगवान ‘नवयौवन’ स्वरूप में प्रकट होते हैं।
-
इस दिन को ‘नवयौवन दर्शन’ कहा जाता है।
-
इसके अगले ही दिन विशाल रथयात्रा की शुरुआत होती है, जिसमें भगवान तीन विशाल रथों पर बैठकर गुंडिचा मंदिर की ओर प्रस्थान करते हैं।
📿 पौराणिक भावार्थ: भगवान जो हमारे जैसे हैं
पुरी का यह आयोजन भक्तों को यह भाव देता है कि—
भगवान केवल पूज्य नहीं, हमारे अपने हैं। वे भी हमारे सुख-दुख को जीते हैं, बीमार होते हैं, उपचार लेते हैं, फिर नवजीवन में लौटते हैं।
डिस्क्लेमर: यह समाचार धार्मिक मान्यता व परंपरा पर आधारित है। aksharsatta.page इसकी पुष्टि नहीं करता।
إرسال تعليق