‘रोकथामात्मक हिरासत असाधारण शक्ति है, इसका सीमित उपयोग हो’ – सुप्रीम कोर्ट की कड़ी टिप्पणी

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने रोकथामात्मक हिरासत (Preventive Detention) को लेकर एक ऐतिहासिक टिप्पणी करते हुए कहा है कि यह राज्य के पास मौजूद अत्यंत असाधारण शक्ति है और इसका प्रयोग बहुत ही सीमित और विशेष परिस्थितियों में ही होना चाहिए। अदालत ने यह महत्वपूर्ण टिप्पणी केरल के पलक्कड़ जिले के एक मामले की सुनवाई के दौरान दी, जिसमें एक साहूकार को हिरासत में लेने का आदेश न्यायिक समीक्षा के दायरे में आया।


🔍 क्या है पूरा मामला?

पलक्कड़ निवासी राजेश नामक व्यक्ति, जो 'ऋतिका फाइनेंस' नामक निजी फाइनेंस कंपनी संचालित करता है, पर केरल मनी लेंडर्स एक्ट, 1958 के तहत चार आपराधिक मामले दर्ज हैं। हालांकि, इन मामलों में उसे पहले ही जमानत मिल चुकी थी। पुलिस का दावा था कि वह जमानत की शर्तों का उल्लंघन कर रहा है और समाज के लिए खतरा बन चुका है। इसी आधार पर जिलाधिकारी ने उसे रोकथामात्मक हिरासत में लेने का आदेश पारित कर दिया।

⚖️ सुप्रीम कोर्ट की स्पष्ट टिप्पणी

पीठ ने कहा —

"रोकथामात्मक हिरासत संविधान के अनुच्छेद 22(3)(b) के तहत मान्य है, लेकिन यह व्यक्ति की स्वतंत्रता को संभावित अपराध के संदेह के आधार पर सीमित करने वाली एक असाधारण व्यवस्था है। ऐसे में इसका प्रयोग केवल विशेष, अनिवार्य और ठोस परिस्थितियों में ही होना चाहिए।"

सुप्रीम कोर्ट ने 20 जून 2024 को जारी हिरासत आदेश और 4 सितंबर 2024 को केरल हाईकोर्ट द्वारा उसे वैध ठहराने वाले फैसले को भी रद्द कर दिया।

📜 केरल का कानून और पुलिस का तर्क

केरल सरकार ने एंटी-सोशल एक्टिविटीज (रोकथाम) अधिनियम, 2007 के तहत आरोपी को ‘ज्ञात गुंडा’ बताते हुए कार्रवाई की। पुलिस का दावा था कि राजेश न केवल बार-बार अपराध कर रहा था, बल्कि बेल की शर्तें भी तोड़ रहा था। हालांकि, अदालत ने कहा कि ऐसा कोई पुख्ता प्रमाण नहीं है जिससे यह साबित हो कि आरोपी बेल की शर्तों का उल्लंघन कर रहा था।

👩‍⚖️ क्या कहा कोर्ट ने राज्य सरकार से?

कोर्ट ने कहा कि यदि राज्य सरकार आरोपी के आचरण से चिंतित है, तो वह संबंधित अदालत में जाकर उसकी जमानत विधिक प्रक्रिया के तहत रद्द करवाने की मांग कर सकती है। लेकिन यह निर्णय कोर्ट की वर्तमान टिप्पणी से प्रभावित नहीं होना चाहिए।

👩‍👦 परिवार की प्रतिक्रिया और अंतिम फैसला

राजेश की पत्नी ने इस कार्रवाई को ‘गैरकानूनी’ बताते हुए केरल हाईकोर्ट में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दाखिल की थी, जिसे खारिज कर दिया गया। इसके बाद उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। सुप्रीम कोर्ट ने 10 दिसंबर 2024 को आरोपी की रिहाई का आदेश दिया और अब यह स्पष्ट किया कि हिरासत आदेश कानून सम्मत नहीं था।

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