बालाघाट: महेश सहारे ने कांग्रेस जिलाध्यक्ष पद के लिए ठोकी दावेदारी

बालाघाट। जिले की राजनीतिक सरगर्मी उस समय और तेज हो गई, जब आदिवासी गोवारी समाज के प्रदेशाध्यक्ष और कांग्रेस के सक्रिय कार्यकर्ता महेश सहारे ने कांग्रेस जिलाध्यक्ष पद के लिए औपचारिक रूप से अपनी दावेदारी पेश की। बालाघाट में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (AICC) के पर्यवेक्षक सूरज हेगड़े और प्रदेश कांग्रेस कमेटी (PCC) के पर्यवेक्षक तथा नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार के समक्ष उन्होंने अपने अनुभव, संघर्ष और संगठनात्मक ताकत के आधार पर दावेदारी रखी।


मल्लिकार्जुन खड़गे से ली थी सदस्यता, सपा में भी निभा चुके हैं संगठनात्मक भूमिका


महेश सहारे ने बीते विधानसभा चुनाव के दौरान कटंगी में आयोजित सभा में कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री मल्लिकार्जुन खड़गे से पार्टी की सदस्यता ली थी। कांग्रेस में शामिल होने से पहले वे समाजवादी पार्टी में दो बार जिलाध्यक्ष पद की जिम्मेदारी निभा चुके हैं। इसके अलावा वे कटंगी विधानसभा क्षेत्र से सपा के उम्मीदवार के रूप में विधानसभा चुनाव भी लड़ चुके हैं, जिससे यह स्पष्ट है कि उन्हें राजनीति और संगठन दोनों का गहरा अनुभव है।

पिछड़े, आदिवासी और दलित वर्ग के लिए आवाज़ बुलंद करने वाला चेहरा

महेश सहारे को जिले में एक संघर्षशील, सजग और सामाजिक सरोकारों से जुड़े नेता के रूप में पहचाना जाता है। वे लगातार पिछड़ा वर्ग, दलित, आदिवासी और अल्पसंख्यक समाज के अधिकारों के लिए सड़कों पर संघर्ष करते रहे हैं। जब राहुल गांधी ने संसद में जातीय जनगणना की मांग उठाई, तो बालाघाट जिले में उस आवाज़ को जन आंदोलन का रूप महेश सहारे ने ही दिया। वे इस मुद्दे पर लगातार प्रदर्शन, जनजागरूकता और संवाद कर जिले में नई चेतना ला चुके हैं।

गोवारी समाज को दिलाया नेतृत्व और आवाज

बालाघाट जिले की बड़ी आबादी आदिवासी गोवारी समाज की है, जिसे लंबे समय से आदिवासी दर्जे की मांग को लेकर संघर्ष करना पड़ रहा है। महेश सहारे न केवल इस समाज के प्रदेशाध्यक्ष हैं, बल्कि भोपाल से लेकर दिल्ली तक, इस वर्ग की आवाज को मजबूती से रखने का काम उन्होंने किया है। उनके प्रयासों के कारण आज गोवारी समाज जिलेभर में एकजुट होकर उनके नेतृत्व में आगे बढ़ रहा है।

अन्य वर्गों से भी मजबूत जुड़ाव

महेश सहारे वाहन चालक एवं परिचालक संघ के भी प्रतिनिधि हैं, और उन्होंने इस क्षेत्र से जुड़े कामगारों के अधिकारों के लिए भी कई आंदोलनों का नेतृत्व किया है। उनकी लोकप्रियता न केवल आदिवासी समाज में, बल्कि श्रमिक, व्यापारी और ग्रामीण वर्ग में भी स्पष्ट रूप से दिखाई देती है।


कांग्रेस के लिए संगठनात्मक और राजनीतिक लाभ की संभावना

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यदि कांग्रेस उन्हें जिलाध्यक्ष पद की जिम्मेदारी सौंपती है, तो बालाघाट जिले में ओबीसी, आदिवासी, दलित और अल्पसंख्यक वर्ग का कांग्रेस से बड़ा जुड़ाव बन सकता है। साथ ही, उनका जमीनी अनुभव और विभिन्न वर्गों में पकड़, पार्टी को लोकसभा और विधानसभा चुनावों में भी मजबूती प्रदान कर सकती है।

महेश सहारे एक ऐसा नाम बन चुके हैं, जो संघर्ष, संगठन और सामाजिक समर्पण का प्रतीक है। अगर कांग्रेस नेतृत्व उनके अनुभव और लोकप्रियता को पहचानकर उन्हें संगठन की जिम्मेदारी देता है, तो बालाघाट जिले में कांग्रेस एक नई ऊर्जा, दिशा और जनाधार के साथ आगे बढ़ सकती है।

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