नई दिल्ली, 31 जुलाई 2025: सुप्रीम कोर्ट ने 2006 निठारी सीरियल किलिंग मामले में सुरेंद्र कोली और मोनिंदर सिंह पंढेर की बरी को बरकरार रखते हुए केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) और पीड़ित परिवारों की 14 याचिकाओं को खारिज कर दिया। यह फैसला इलाहाबाद उच्च न्यायालय के अक्टूबर 2023 के उस निर्णय के खिलाफ दायर याचिकाओं पर आया, जिसमें दोनों आरोपियों को सबूतों के अभाव में बरी किया गया था। इस फैसले ने पीड़ित परिवारों और जांच एजेंसी को बड़ा झटका दिया है।
निठारी कांड का खौफनाक इतिहास
29 दिसंबर 2006 को नोएडा के निठारी गांव में मोनिंदर सिंह पंढेर के घर के पीछे एक नाले से आठ बच्चों के कंकाल मिलने के बाद यह जघन्य हत्याकांड सामने आया था। आगे की तलाशी में और अवशेष बरामद हुए, जिनमें ज्यादातर गरीब बच्चों और युवतियों के थे, जो उस इलाके से लापता हुए थे। सीबीआई ने 10 दिनों के भीतर जांच अपने हाथ में ली और कुल 19 पीड़ितों के अवशेष बरामद किए गए। कोली, जो पंढेर के घर में नौकर था, पर हत्या, अपहरण, बलात्कार, और सबूत नष्ट करने के आरोप लगे, जबकि पंढेर पर शुरू में अनैतिक तस्करी का आरोप था। बाद में पीड़ित परिवारों की याचिकाओं पर गाजियाबाद कोर्ट ने पंढेर को पांच अन्य मामलों में भी शामिल किया।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला
प्रधान न्यायाधीश बी आर गवई, न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा, और न्यायमूर्ति के विनोद चंद्रन की पीठ ने बुधवार को याचिकाओं को खारिज करते हुए कहा, “इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले में कोई खामी नहीं है।” कोर्ट ने टिप्पणी की कि मीडिया दबाव के बावजूद उच्च न्यायालय ने ठोस और निष्पक्ष फैसला दिया। सीजेआई गवई ने कहा, “ट्रायल कोर्ट का फैसला शायद मीडिया ट्रायल पर आधारित था, लेकिन उच्च न्यायालय ने साक्ष्य अधिनियम की धारा 27 के तहत सही विश्लेषण किया।”
कोर्ट ने सीबीआई के वकील राजा बी ठाकरे और पीड़ित परिवारों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता गीता लूथरा से पूछा कि वे उच्च न्यायालय के फैसले में कानूनी खामी बताएं। जब वकीलों ने खोपड़ियों और सामान की बरामदगी का जिक्र किया, तो सीजेआई ने कहा, “मुझे एक भी ऐसा फैसला दिखाएं, जिसमें बिना आरोपी के बयान के पुलिस के सामने की गई बरामदगी को कानूनी माना गया हो।” कोर्ट ने माना कि नाले से मिले अवशेषों की बरामदगी साक्ष्य अधिनियम की धारा 27 के तहत स्वीकार्य नहीं थी, क्योंकि यह केवल कोली के लिए विशेष रूप से सुलभ स्थान से नहीं थी।
उच्च न्यायालय का निर्णय
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 16 अक्टूबर 2023 को कोली को 12 मामलों और पंढेर को दो मामलों में बरी करते हुए कहा था कि अभियोजन पक्ष उचित संदेह से परे उनकी दोषसिद्धि साबित करने में विफल रहा। कोर्ट ने जांच को “लापरवाही भरा” और “सार्वजनिक विश्वास के साथ विश्वासघात” करार दिया। उच्च न्यायालय ने यह भी उल्लेख किया कि ऑर्गन ट्रेड की संभावना की जांच नहीं की गई और सबूतों को एकत्र करने की प्रक्रिया में मूलभूत नियमों का उल्लंघन हुआ।
पीड़ितों का दर्द और सीबीआई की नाकामी
इस फैसले पर पप्पू लाल, एक पीड़ित के पिता, ने कहा, “हमने अपने बच्चों को खोया, और अब हमें न्याय भी नहीं मिला।” सीबीआई पर प्रभावी रणनीति के अभाव और गवाहों के बयान बदलने के बावजूद उनके खिलाफ कार्रवाई न करने का आरोप है। वकीलों ने दावा किया कि कोली का कबूलनामा 60 दिनों की हिरासत और कथित यातना के बाद लिया गया था, जो कानूनी रूप से स्वीकार्य नहीं था।
कोली की स्थिति
हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने कोली की 12 मामलों में बरी को बरकरार रखा, लेकिन वह 14 वर्षीय रिम्पा हलधर हत्याकांड में आजीवन कारावास की सजा के कारण जेल में रहेगा। इस मामले में उनकी मृत्यु सजा को 2015 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने माफी याचिका में देरी के आधार पर आजीवन कारावास में बदल दिया था। पंढेर को सभी छह मामलों में पूरी तरह बरी कर दिया गया है।

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