स्थानीय ग्रामीणों के अनुसार, लंबे समय से पक्की सड़क की मांग की जा रही है, लेकिन प्रशासन की ओर से कोई ठोस पहल नहीं की गई। बारिश में रास्ता इतना बदहाल हो गया कि वाहन तो दूर, पैदल चलना भी जोखिम भरा हो गया है। इसी स्थिति में गर्भवती महिला को अस्पताल पहुंचाने के लिए ग्रामीणों को जान हथेली पर रखकर कीचड़ भरे रास्ते से गुजरना पड़ा।
मानव अधिकार आयोग ने लिया संज्ञान
समाचार माध्यमों में मामला सामने आने के बाद मध्यप्रदेश मानव अधिकार आयोग ने इस पर संज्ञान लिया है। क्षेत्रीय कार्यालय प्रभारी फरजाना मिर्जा ने बताया कि यह मामला जनहित से जुड़ा है और प्रथम दृष्टया मानवाधिकारों के उल्लंघन की श्रेणी में आता है। आयोग के कार्यवाहक अध्यक्ष राजीव कुमार टण्डन की एकलपीठ ने जबलपुर कलेक्टर को निर्देशित किया है कि वे एक माह के भीतर मामले की जांच कर विस्तृत प्रतिवेदन प्रस्तुत करें। साथ ही यह भी पूछा गया है कि सड़क निर्माण को लेकर अब तक क्या कार्यवाही या प्रस्ताव तैयार किए गए हैं।
सवालों के घेरे में ग्रामीण विकास की हकीकत
यह घटना न केवल ग्रामीण बुनियादी ढांचे की कमजोर स्थिति को उजागर करती है, बल्कि सरकारी दावों पर भी सवाल खड़े करती है। एक ओर सरकारें ग्रामीण स्वास्थ्य व मातृ-शिशु सुरक्षा की बात करती हैं, वहीं दूसरी ओर आज भी कई गांव ऐसे हैं जहां बारिश में निकलने का एक सुरक्षित रास्ता तक नहीं है।
प्रशासन की निष्क्रियता पर नाराज़गी
ग्रामीणों का कहना है कि उन्होंने कई बार पंचायत और जनप्रतिनिधियों से शिकायत की है, लेकिन कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई। अब आयोग की सख्ती से उम्मीद की जा रही है कि समस्या का स्थायी समाधान हो सकेगा।
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