हिरासत में मौतों के मामले बने चुनौती
जस्टिस रामसुब्रमण्यम ने यह भी बताया कि वर्तमान में पुलिस हिरासत में मौत से जुड़े 285 मामले, जबकि न्यायिक हिरासत में मौत से जुड़े 2,532 मामले आयोग के समक्ष विचाराधीन हैं। उन्होंने यह स्पष्ट किया कि वर्ष 1993 में जारी दिशा-निर्देशों के अनुसार, यदि किसी व्यक्ति की मौत जेल या थाने में होती है तो संबंधित अधिकारियों को 24 घंटे के भीतर रिपोर्ट आयोग को सौंपना अनिवार्य होता है। आयोग का दावा है कि 99.99% मामलों में रिपोर्ट समय पर प्राप्त हो जाती है, जिसके बाद आवश्यक दस्तावेजों की त्वरित मांग की जाती है।
स्वतः संज्ञान मामलों में तेज़ी से उछाल
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग द्वारा स्वतः संज्ञान (Suo-Motu) लेकर मामलों पर कार्यवाही की प्रवृत्ति में भी उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है। वर्ष 2021 में जहां केवल 17 मामले स्वतः संज्ञान से दर्ज किए गए थे, वहीं यह संख्या 2022 में 60, 2023 में 117 और 2024 में 105 तक पहुंच चुकी थी। वर्ष 2025 की शुरुआत के केवल सात महीनों में ही यह आंकड़ा 50 से अधिक हो चुका है। यह रुझान बताता है कि आयोग अब पहले से कहीं अधिक सजग और सक्रिय भूमिका में दिखाई दे रहा है।
सरकारों से संवाद और सूचकांकों पर सवाल
यह पूछे जाने पर कि क्या आयोग सरकारों के साथ सक्रिय वार्तालाप करता है, न्यायमूर्ति रामसुब्रमण्यम ने कहा कि NHRC नियमित रूप से राज्य सरकारों और केंद्रीय संस्थाओं से वार्ता करता है। हाल ही में आयोग ने भुवनेश्वर में विभिन्न सरकारी अधिकारियों के साथ मैदानी बैठकें आयोजित की थीं।
उन्होंने अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार सूचकांकों को लेकर भी शंका जताई और बिना किसी देश का नाम लिए कहा कि एक ऐसा देश है जो मानवाधिकारों के सूचकांक में ऊँचे पायदान पर है, लेकिन प्रेस की स्वतंत्रता के मामले में बहुत नीचे दर्जा रखता है। उन्होंने इन सूचकांकों को 'विचारधारात्मक पूर्वाग्रहों से ग्रसित' बताते हुए कहा कि कई बार ये सूचकांक केवल निवेशकों के हितों को साधने के लिए तैयार किए जाते हैं।
तेलंगाना में विशेष शिविर का सफल आयोजन
आयोग की ओर से जारी एक आधिकारिक विज्ञप्ति में बताया गया कि हाल ही में तेलंगाना राज्य में मानवाधिकार उल्लंघन से जुड़े 109 मामलों की सुनवाई की गई। यह सुनवाई आयोग के अध्यक्ष जस्टिस रामसुब्रमण्यम, सदस्य न्यायमूर्ति विद्युत रंजन सारंगी और विजया भारती सयानी द्वारा की गई। विशेष शिविर का उद्देश्य जमीनी स्तर पर हो रहे अधिकार हननों की सीधी सुनवाई और शीघ्र निस्तारण था।
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