शिमला। हिमाचल प्रदेश में मानसून का तांडव न केवल जनजीवन को अस्त-व्यस्त कर रहा है, बल्कि राज्य सरकार के लिए भी गंभीर प्रशासनिक और राजनीतिक चुनौती बनकर उभरा है। मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुखू के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार को इस आपदा प्रबंधन में तत्परता और पारदर्शिता के नए मानक स्थापित करने की कसौटी पर परखा जा रहा है। वहीं, विपक्ष भी सरकार की तैयारियों पर सवाल उठा रहा है।
अब तक 72 मौतें, 40 लोग लापता, 700 करोड़ रुपये का अनुमानित नुकसान
20 जून से शुरू हुए मानसून सत्र के दौरान हिमाचल प्रदेश ने अभूतपूर्व प्राकृतिक आपदा का सामना किया है। बादल फटने की 14 घटनाओं, भूस्खलन, और बाढ़ ने अब तक 72 लोगों की जान ले ली है जबकि 40 से अधिक लोग लापता हैं। प्रारंभिक आंकलन में नुकसान 541 करोड़ रुपये बताया गया था, लेकिन मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुखू ने आशंका जताई है कि यह आंकड़ा 700 करोड़ रुपये तक पहुंच सकता है।
500 से अधिक सड़कें बंद, 14 पुल ढहे, मंडी जिला सबसे अधिक प्रभावित
राज्यभर में 500 से अधिक सड़कें बंद हैं, जिससे ग्रामीण और शहरी इलाकों का संपर्क कट गया है। अकेले मंडी जिले में 176 सड़कें बंद हैं। 14 पुल बाढ़ की चपेट में आ चुके हैं। इससे राहत और बचाव अभियानों में गंभीर बाधाएं आई हैं।
मुख्यमंत्री सक्रिय, विपक्ष हमलावर
मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुखू ने आपदा प्रभावित इलाकों का दौरा कर राहत कार्यों की निगरानी की और प्रत्येक प्रभावित परिवार को ₹5,000 की आपातकालीन किराया सहायता देने की घोषणा की। वहीं, पूर्व मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने मंडी जिले में अपने निर्वाचन क्षेत्र का दौरा कर सरकार को घेरते हुए कहा कि "प्रशासन ने समय रहते अलर्ट नहीं किया, परिणामस्वरूप जानमाल का बड़ा नुकसान हुआ।"
राजनीतिक सरगर्मियां तेज, केंद्र-राज्य समन्वय पर फोकस
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने मुख्यमंत्री सुखू से बात कर हरसंभव मदद का आश्वासन दिया है। एनडीआरएफ और सेना की टीमें राहत कार्यों में जुटी हैं। हिमाचल सरकार ने केंद्र से तत्काल विशेष राहत पैकेज की मांग की है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह आपदा राज्य सरकार की नीतिगत दक्षता और केंद्र-राज्य समन्वय की परीक्षा भी है।
भविष्य की चुनौती: पुनर्निर्माण और पुनर्वास
सरकार को अब केवल राहत कार्य नहीं, बल्कि व्यापक पुनर्निर्माण की चुनौती का सामना करना है। जल आपूर्ति की 281 योजनाएं बंद हो गई हैं, 500 से अधिक ट्रांसफॉर्मर खराब हो चुके हैं और सैकड़ों गांवों में बिजली-पानी नहीं है। साथ ही 300 से अधिक पशुओं की मृत्यु और सैकड़ों मकानों के क्षतिग्रस्त होने से मानवीय संकट और गहरा गया है।
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