बरगी नगर, जबलपुर। बरगी डैम की जलराशि में डूबकर विस्थापित हुआ बींझा गांव आज भी बुनियादी अधिकारों से वंचित है। यहां की आदिवासी बाहुल्य आबादी वर्षों से जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं को लेकर संघर्षरत है, लेकिन ग्राम पंचायत की निष्क्रियता और उदासीन तंत्र ग्रामीणों की व्यथा को और गहरा बना रहा है।
छह महीनों से नल-जल योजना ठप्प, ग्रामीणों की गुहार बेअसर
गांव के वयोवृद्ध बसोरी लाल बर्मन और संघर्षशील मथन लाल ने बताया कि बीते छह महीनों से वे ग्राम पंचायत के सरपंच, सचिव और रोजगार सहायक से नल-जल योजना को पुनः संचालित करने की मांग कर रहे हैं। लेकिन यह प्रशासनिक तिकड़ी जैसे गांव को भुला चुकी है — न आना, न सुनना और न समाधान देना। इन पदाधिकारियों की गांव में झलक तक नहीं मिलती।
संकट का मूल — देखरेख में लापरवाही और संरचनात्मक जर्जरता
जानकारी के अनुसार, बींझा गांव को कभी सिंचाई विभाग द्वारा नल-जल और बाड़ी सिंचाई योजना से आच्छादित किया गया था। परंतु जब यह योजना ग्राम पंचायत को सौंप दी गई, तब से इसके हालात बद से बदतर होते गए। बोरिंग की नियमित सफाई का अभाव, वर्षों से जीर्ण मोटर पंप और पंप हाउस की मरम्मत न होना — इन सभी कारणों ने जलप्रदाय व्यवस्था को पूरी तरह से पंगु बना दिया है।
तीन हैंडपंप, एक ही चालू — ग्रामीणों की प्यास का मखौल
गांव की महिलाओं — सुनीता यादव, फत्तो बाई, सीता यादव और अन्य ग्रामीणों — ने बताया कि समस्त गांव की प्यास बुझाने के लिए महज़ तीन हैंडपंप हैं, जिनमें से केवल एक ही चालू हालत में है। गर्मियों में वह भी धोखा दे जाता है। ऐसे में बैकवॉटर ही एकमात्र विकल्प बनता है, जो गांव से दो किलोमीटर दूर ऊबड़-खाबड़ चढ़ाई पर स्थित है। इस दुर्गम यात्रा से रोज़ जल लाना ग्रामीणों की नियति बन चुका है।
आवश्यकताएं स्पष्ट हैं, अपेक्षाएं सरकार से
ग्रामीणों ने स्पष्ट किया है कि नल-जल योजना को अविलंब पुनः चालू किया जाए, साथ ही एक पृथक सार्वजनिक कुआं खुदवाया जाए, जिसमें स्वतंत्र मोटर पंप की व्यवस्था हो। यह न सिर्फ पेयजल संकट को हल करेगा, बल्कि ग्रामीणों को एक सम्मानजनक जीवन की राह भी देगा।
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✍️ संपादक: दयाल चंद यादव (एमसीजे)
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