(दयाल चंद यादव)
मुंबई। महाराष्ट्र की राजनीति में एक बार फिर ठाकरे बंधुओं का 'मिलन' चर्चाओं में है। करीब दो दशकों बाद शिवसेना (यूबीटी) प्रमुख उद्धव ठाकरे और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) प्रमुख राज ठाकरे एक ही मंच पर नजर आए। यह ‘मिलन’ सिर्फ पारिवारिक नहीं, बल्कि राज्य की राजनीतिक दिशा बदलने वाला संकेत भी माना जा रहा है।
राजनीतिक जानकारों के अनुसार, यह मुलाकात सिर्फ संयोग नहीं, बल्कि 2026 में शिवसेना के 60 वर्ष पूरे होने और बालासाहेब ठाकरे की 100वीं जयंती को लेकर भावनात्मक राजनीति की पुनः शुरुआत हो सकती है। शिवसेना की विरासत को लेकर लंबे समय से चल रही लड़ाई में यह एक निर्णायक मोड़ साबित हो सकता है।
क्या 2026 के पहले बनेगा ‘ठाकरे युनाइटेड फ्रंट’?
राज और उद्धव ठाकरे के एक मंच पर आने से सियासी गलियारों में यह अटकलें तेज हैं कि दोनों मिलकर एक नया ‘ठाकरे युनाइटेड फ्रंट’ बना सकते हैं। ऐसे किसी गठबंधन से भाजपा नीत महायुति और एकनाथ शिंदे गुट की चिंता बढ़ना तय है, खासकर तब जब लोकसभा चुनाव में महा विकास अघाड़ी (MVA) ने महाराष्ट्र में शानदार प्रदर्शन किया है।
राजनीति में वापसी की कोशिश में ठाकरे बंधु
2024 के विधानसभा चुनावों में शिवसेना (यूबीटी) जहां मुश्किल से 20 सीटें ला पाई, वहीं मनसे खाता भी नहीं खोल सकी। यह खराब प्रदर्शन दोनों दलों को आत्ममंथन और गठजोड़ की ओर धकेल रहा है। राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि बालासाहेब ठाकरे की विरासत को साथ लेकर दोनों दल एक बार फिर मराठी मानुष के मुद्दे पर सशक्त होकर उभर सकते हैं।
शिवसेना में लगातार बगावतें बनी चुनौती
शिवसेना की राजनीतिक यात्रा में चार बड़े विद्रोह हो चुके हैं — छगन भुजबल (1991), नारायण राणे (2005), राज ठाकरे (2005-06), और एकनाथ शिंदे (2022)। आज की तारीख में चुनाव आयोग की मान्यता और 'धनुष-बाण' चिन्ह एकनाथ शिंदे गुट के पास है। वहीं उद्धव ठाकरे की पार्टी ‘मशाल’ चिन्ह के साथ सियासी अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है।
भाजपा के लिए चेतावनी की घंटी?
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अगर राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे अपने मतभेद भुलाकर एक मंच पर आते हैं, तो यह भाजपा और शिंदे गुट के लिए बड़ा सियासी झटका हो सकता है। खासतौर पर शहरी मराठी वोट बैंक, जो कभी बालासाहेब ठाकरे की ताकत था, उसमें बदलाव आ सकता है।
महाराष्ट्र की राजनीति में यह ठाकरे-ठाकरे मेल सिर्फ एक भावनात्मक क्षण नहीं, बल्कि एक बड़ी रणनीतिक बिसात का हिस्सा हो सकता है। यदि यह गठजोड़ आकार लेता है, तो 2026 का महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव पूरी तरह से नई दिशा में जा सकता है।
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