पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर सिंह की पुण्यतिथि पर विशेष : भारतीय राजनीति के "युवा तुर्क" को नमन


पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर सिंह 

✍️ लेखक: हरिशंकर पाराशर 
बालिया से भारत तक: सादगी, संघर्ष और सिद्धांतों का नाम था चंद्रशेखर

आज, 8 जुलाई को भारत के पूर्व प्रधानमंत्री और समाजवादी विचारधारा के प्रखर प्रवक्ता चंद्रशेखर सिंह की पुण्यतिथि है। भारतीय राजनीति में "युवा तुर्क" के नाम से पहचाने जाने वाले इस युगपुरुष का जीवन संघर्ष, ईमानदारी और जनसेवा की मिसाल रहा। उनके विचार आज भी राजनीति में मूल्य आधारित नेतृत्व की आवश्यकता को रेखांकित करते हैं।


✨ प्रारंभिक जीवन और वैचारिक निर्माण

17 अप्रैल 1927, इब्राहिमपट्टी (बलिया, उत्तर प्रदेश) में जन्मे चंद्रशेखर एक साधारण किसान परिवार से थे। लेकिन उनकी सोच असाधारण थी। इलाहाबाद विश्वविद्यालय में पढ़ाई के दौरान वे छात्र राजनीति में सक्रिय हुए और समाजवादियों के संपर्क में आए। आचार्य नरेंद्र देव जैसे नेताओं ने उनके वैचारिक मस्तिष्क को निखारा।

उन्होंने प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के माध्यम से सक्रिय राजनीति में प्रवेश किया और बाद में कांग्रेस में शामिल होकर 'युवा तुर्क' के रूप में उभरे। उनका स्पष्टवाद, ईमानदारी और सिद्धांतों के प्रति अडिगता उन्हें बाकी नेताओं से अलग बनाती थी।


📰 लेखनी का योद्धा: 'यंग इंडिया' और 'मेरी जेल डायरी'

राजनीति के साथ-साथ चंद्रशेखर जी का साहित्यिक योगदान भी उल्लेखनीय है। वे 'यंग इंडिया' साप्ताहिक पत्रिका के संपादक रहे, जिसमें उनके संपादकीय आज भी विचारशील पाठकों के लिए मार्गदर्शक हैं।
आपातकाल (1975) में जेल में रहते हुए उन्होंने जो "मेरी जेल डायरी" लिखी, वह लोकतांत्रिक मूल्यों पर हुए आघात की गहरी विवेचना है। उनकी "डायनेमिक्स ऑफ चेंज" जैसी पुस्तकें विचार और सिद्धांतों पर आधारित राजनीति की राह दिखाती हैं।


🇮🇳 प्रधानमंत्री के रूप में ऐतिहासिक कार्यकाल

चंद्रशेखर जी 10 नवंबर 1990 से 21 जून 1991 तक भारत के आठवें प्रधानमंत्री रहे। भले ही कार्यकाल छोटा रहा, परंतु उन्होंने लोकतंत्र की गरिमा और संविधान के मूल्यों की रक्षा में बड़ा योगदान दिया।
उनकी सरकार कांग्रेस के बाहरी समर्थन पर टिकी थी, लेकिन जब राजीव गांधी पर जासूसी का विवाद खड़ा हुआ और समर्थन हटा लिया गया, तो उन्होंने बिना पद से चिपके संसद भंग कर चुनाव कराने की सिफारिश की — यह उनके सिद्धांतवादी नेतृत्व की मिसाल है।


🚩 सामाजिक न्याय और गरीबों की आवाज

चंद्रशेखर जी ने हमेशा किसानों, गरीबों, श्रमिकों और वंचितों के पक्ष में आवाज उठाई।
उनका मानना था कि "राजनीति सत्ता का नहीं, सेवा का माध्यम होनी चाहिए।"
उन्होंने पद और प्रतिष्ठा की परवाह किए बिना भारत को करीब से समझने के लिए पदयात्रा की और आमजन की पीड़ा को महसूस किया।
उनकी राजनीति में नैतिकता और जनसरोकार की प्राथमिकता थी — आज जब राजनीति में अवसरवादिता हावी हो चुकी है, चंद्रशेखर की स्पष्टवादिता की याद और भी प्रासंगिक हो जाती है।


🔍 आज के संदर्भ में क्यों प्रासंगिक हैं चंद्रशेखर?

"जब सत्ता जनता को बाँटने लगे, तब समझो लोकतंत्र खतरे में है।" — चंद्रशेखर

यह कथन आज के राजनीतिक ध्रुवीकरण और सत्तालोलुप प्रवृत्तियों के दौर में दिशासूचक बन चुका है।
उनकी सादगी, बेबाकी और नीतियों की ईमानदारी आज के नेताओं के लिए दर्पण और जनता के लिए उम्मीद की तरह है।


🙏 निष्कर्ष: विचारों के प्रकाश स्तंभ

स्व. चंद्रशेखर सिंह जी भारतीय राजनीति के उन गिने-चुने नेताओं में से थे जिन्होंने सत्ता की नहीं, बल्कि लोकनीति की राजनीति की
उनकी पुण्यतिथि पर उन्हें शत-शत नमन, साथ ही यह संकल्प कि हम उनके विचारों, आदर्शों और साहसिक नेतृत्व से प्रेरणा लेकर लोकतंत्र को मजबूती देने का कार्य करें।


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