न्याय की गद्दी छोड़ने के बाद अब आवास भी खाली करें: पूर्व CJI चंद्रचूड़ को सुप्रीम कोर्ट प्रशासन का अल्टीमेटम, केंद्र को भेजा पत्र

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट प्रशासन ने एक असामान्य लेकिन सशक्त कदम उठाते हुए भारत के पूर्व प्रधान न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ से उनका आधिकारिक सरकारी आवास खाली कराने को लेकर केंद्र सरकार को औपचारिक पत्र सौंपा है। यह मांग सीधे तौर पर कृष्ण मेनन मार्ग स्थित टाइप-8 बंगलों में से बंगला संख्या-5 को लेकर की गई है, जहां चंद्रचूड़ अभी तक निवासरत हैं, जबकि नियमनुसार उनकी रहने की अनुमति की अवधि समाप्त हो चुकी है।

प्राप्त सूत्रों के अनुसार, यह पत्र 1 जुलाई को केंद्रीय आवास एवं शहरी कार्य मंत्रालय को प्रेषित किया गया। इसमें आग्रह किया गया है कि चंद्रचूड़ को अब उक्त बंगला तत्काल खाली करने के निर्देश दिए जाएं और उसे सुप्रीम कोर्ट के ‘आवास पूल’ में पुनः सम्मिलित किया जाए।

यह उल्लेखनीय है कि चंद्रचूड़, जिन्होंने नवंबर 2022 से नवंबर 2024 तक भारत के 50वें प्रधान न्यायाधीश के रूप में कार्य किया था, सेवानिवृत्त होने के आठ महीने बाद भी उसी आवास में निवास कर रहे हैं। जबकि 2022 में संशोधित न्यायिक नियमों के मुताबिक, किसी सेवानिवृत्त प्रधान न्यायाधीश को अधिकतम छह माह तक ही टाइप-7 श्रेणी का आवास रखने की अनुमति होती है।

अंदरूनी दस्तावेज़ों के हवाले से यह भी स्पष्ट हुआ है कि चंद्रचूड़ ने 18 दिसंबर 2024 को तत्कालीन सीजेआई संजीव खन्ना को पत्र लिखकर 30 अप्रैल 2025 तक बंगले में रहने की अनुमति मांगी थी, क्योंकि उन्हें जो तुगलक रोड स्थित बंगला संख्या-14 आवंटित किया गया था, वह मरम्मताधीन था। खन्ना ने उस समय मानवीय आधार पर इस निवेदन को स्वीकार कर लिया था। इसके फलस्वरूप, उन्हें दिसंबर 2024 से अप्रैल 2025 तक 5000 रुपये प्रतिमाह लाइसेंस शुल्क पर रहने की छूट दी गई।

बाद में, उन्होंने मौखिक रूप से मई 2025 के अंत तक रहने की अनुमति भी मांगी थी, जिसे इस शर्त पर स्वीकृत किया गया कि यह अंतिम विस्तार होगा। अन्यथा, सुप्रीम कोर्ट के नए न्यायाधीशों को राजधानी में वैकल्पिक अथवा अस्थायी आवास का सहारा लेना पड़ेगा।

अब, सुप्रीम कोर्ट प्रशासन ने 1 जुलाई को केंद्र को भेजे पत्र में चेताया है कि पूर्व सीजेआई द्वारा अब भी आवास पर काबिज रहना न केवल अनुचित है, बल्कि विधिक प्रक्रिया का उल्लंघन भी है। प्रशासन ने इस तथ्य पर बल दिया कि चंद्रचूड़ को “विशेष परिस्थितियों” में अस्थायी विस्तार दिया गया था और सहमति थी कि मई अंत तक बंगला खाली कर दिया जाएगा। अब, यह अवधि पार हो चुकी है और समयानुसार कार्रवाई आवश्यक है।

सुप्रीम कोर्ट प्रशासन की यह मांग कि पूर्व प्रधान न्यायाधीश से सरकारी बंगला तत्काल खाली कराया जाए, न्यायिक तंत्र के भीतर एक असामान्य किंतु आवश्यक उदाहरण प्रस्तुत करती है। इस घटनाक्रम से न केवल नियमों की गंभीरता रेखांकित होती है, बल्कि यह भी स्पष्ट होता है कि न्यायालय अब अपनी परिसंपत्तियों के संचालन में कठोर और न्यायसंगत रुख अपनाने को तत्पर है।

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