सुप्रीम कोर्ट की पीठ का निर्देश
न्यायमूर्ति सूर्यकांत, न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां, और न्यायमूर्ति एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ ने निर्वाचन आयोग के वकील को हटाए गए मतदाताओं का विस्तृत ब्योरा प्रस्तुत करने और इसकी एक प्रति ADR को सौंपने का आदेश दिया। पीठ ने स्पष्ट किया कि यह जानकारी पहले ही राजनीतिक दलों के साथ साझा की जा चुकी है, लेकिन अब इसे सार्वजनिक रूप से उपलब्ध कराने की मांग की जा रही है।
ADR की ओर से पेश अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने दलील दी कि हटाए गए मतदाताओं के नामों के साथ यह स्पष्ट नहीं किया गया है कि उनके नाम मृत्यु, स्थायी पलायन, या अन्य कारणों से हटाए गए हैं। भूषण ने आरोप लगाया कि 75 प्रतिशत मतदाताओं ने 11 सहायक दस्तावेजों में से कोई भी जमा नहीं किया, और उनके नाम बूथ स्तरीय अधिकारियों (BLO) की सिफारिश पर शामिल किए गए।
कोर्ट की टिप्पणी और समयसीमा
पीठ ने निर्वाचन आयोग से कहा, "हम हर प्रभावित मतदाता से संपर्क करेंगे और आवश्यक जानकारी प्राप्त करेंगे। आप शनिवार (9 अगस्त) तक जवाब दाखिल करें और इसे श्री भूषण को देखने दें। इसके बाद हम जांच करेंगे कि क्या खुलासा हुआ और क्या नहीं।" कोर्ट ने यह भी कहा कि नाम हटाने का कारण बाद में बताया जाएगा, क्योंकि यह अभी केवल मसौदा सूची है।
सुप्रीम कोर्ट ने 29 जुलाई को कहा था कि यदि बिहार की मतदाता सूची में बड़े पैमाने पर नाम हटाए गए हैं, तो वह तुरंत हस्तक्षेप करेगी। कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई के लिए 12 और 13 अगस्त 2025 की तारीख तय की है, जब ADR अपने दावों को विस्तार से पेश कर सकता है।
निर्वाचन आयोग की प्रक्रिया पर सवाल
ADR ने अपनी याचिका में मांग की है कि निर्वाचन आयोग हटाए गए 65 लाख मतदाताओं के नाम और हटाने के कारणों को सार्वजनिक करे। याचिका में दावा किया गया है कि बिहार में SIR प्रक्रिया में पारदर्शिता की कमी है, और यह मतदाताओं के अधिकारों का उल्लंघन हो सकता है।
निर्वाचन आयोग ने जवाब में कहा कि SIR प्रक्रिया कानून के अनुसार चल रही है, और यह मतदाता सूची को अद्यतन करने के लिए आवश्यक है। हालांकि, कोर्ट ने आयोग से प्रक्रिया की पारदर्शिता सुनिश्चित करने और प्रभावित मतदाताओं के विवरण को जल्द से जल्द साझा करने का निर्देश दिया।
व्यापक प्रभाव
यह मामला बिहार के आगामी विधानसभा चुनावों से पहले महत्वपूर्ण है, क्योंकि मतदाता सूची में बड़े पैमाने पर बदलाव राजनीतिक दलों और मतदाताओं के बीच विवाद का कारण बन सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट का यह कदम मतदाता सूची की प्रक्रिया में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।

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