पोला पर्व: बालाघाट में बैलों की पूजा और दौड़ के साथ उत्साहपूर्वक मनाया गया त्योहार

बालाघाट, 23 अगस्त 2025। बालाघाट जिले में किसानों का पारंपरिक और सबसे महत्वपूर्ण पोला पर्व 23 अगस्त 2025 को धूमधाम और उत्साह के साथ मनाया गया। महाराष्ट्र से सटे होने के कारण, बालाघाट में इस पर्व को महाराष्ट्रीयन शैली में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। ग्रामीण अंचलों में बैलों की जोड़ियों की पूजा और दौड़ ने इस पर्व को और भी खास बना दिया।


बैलों की सजावट और सामूहिक पूजन

गायखुरी, बगदर्रा, कोसमी और वारासिवनी के जयस्तंभ चौक में किसानों ने अपने बैल जोड़ियों को रंग-बिरंगे कपड़ों और आभूषणों से सजाकर लाया। सामूहिक पूजन के बाद पटाखों की आवाज के साथ बैल जोड़ियों की दौड़ आयोजित की गई, जिसने ग्रामीणों में उत्साह का संचार किया।

किसान रामप्रसाद ने बताया, "पोला पर्व किसानों के लिए विशेष महत्व रखता है। इस दिन हम अपने बैलों से कोई काम नहीं लेते। उनकी तेल से मालिश की जाती है, नहलाया जाता है और रंग-बिरंगे कपड़ों से सजाया जाता है।" बैलों को भोग लगाने के लिए घरों में विशेष पकवान भी बनाए गए।

बैल: किसान का सबसे बड़ा साथी

गायखुरी निवासी योगेश बिसेन ने कहा, "बैल किसान का सबसे अच्छा साथी है। पोला पर्व तक खेती का अधिकांश काम पूरा हो जाता है। इस दिन बैलों की पूजा और सजावट के माध्यम से हम उनके प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त करते हैं।" यह पर्व किसानों और उनके पशुधन के बीच गहरे रिश्ते को दर्शाता है।

मारबत पर्व की तैयारी

पोला पर्व के बाद 24 अगस्त 2025 को मारबत पर्व मनाया जाएगा। इस दिन बुराई के प्रतीक के रूप में मिट्टी की मारबत बनाई जाती है, जिसे गांव या शहर में घुमाकर सीमा के बाहर विसर्जित या दहन किया जाता है। स्थानीय लोगों का कहना है कि यह परंपरा वर्षों पुरानी है, और समय के साथ इसका स्वरूप बदला है, लेकिन इसका महत्व आज भी बरकरार है।

सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व

पोला पर्व न केवल किसानों की मेहनत और उनके पशुधन के प्रति सम्मान को दर्शाता है, बल्कि ग्रामीण संस्कृति को भी जीवंत रखता है। बालाघाट के ग्रामीण अंचलों में इस पर्व का उत्साह देखते ही बनता है, जो स्थानीय समुदाय की एकता और परंपराओं के प्रति निष्ठा को उजागर करता है।

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