हाईकोर्ट का ऐतिहासिक फैसला
छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच, जिसमें जस्टिस रजनी दुबे और जस्टिस एके प्रसाद शामिल थे, ने इस मामले की गहन सुनवाई की। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि पत्नी का बेरोजगार पति को बार-बार ताने मारना और अपमानित करना मानसिक क्रूरता की श्रेणी में आता है। इससे पहले फैमिली कोर्ट ने पति की तलाक की अर्जी को खारिज कर दिया था, लेकिन हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट के फैसले को पलटते हुए तलाक को मंजूरी दी।
मामले की पूरी कहानी
पति ने कोर्ट में बताया कि उसने अपनी पत्नी की पढ़ाई के लिए हर तरह से सहयोग किया और उसे PhD पूरी करने में मदद की। पत्नी ने प्रिंसिपल की नौकरी हासिल की, लेकिन इसके बाद उसका व्यवहार पूरी तरह बदल गया। पति के अनुसार, पत्नी उसे बेरोजगारी के लिए ताने मारती थी और घरेलू हिंसा का झूठा आरोप लगाती थी। साल 2023 में पत्नी अपने बेटे को लेकर मायके चली गई और पति से सारे संबंध तोड़ लिए। इसके बाद पति ने फैमिली कोर्ट में तलाक की याचिका दायर की थी, जिसे खारिज कर दिया गया।
पति ने हार नहीं मानी और छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में अपील दायर की। हाईकोर्ट ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनीं और पति के पक्ष को मजबूत साक्ष्यों के आधार पर सही ठहराया। कोर्ट ने कहा, “पत्नी का पति को बार-बार अपमानित करना और बेरोजगारी के लिए ताने मारना मानसिक तनाव का कारण बना, जो रिश्ते को बनाए रखने के लिए असहनीय है।”
मानसिक क्रूरता का आधार
हाईकोर्ट ने अपने फैसले में भारतीय विवाह अधिनियम की धारा 13(1)(i-a) का हवाला देते हुए कहा कि पति को अपमानित करना और ताने मारना मानसिक क्रूरता के दायरे में आता है। कोर्ट ने यह भी नोट किया कि पत्नी का पति और बेटे को छोड़कर चले जाना रिश्ते में गहरी दरार को दर्शाता है। हाईकोर्ट ने माना कि पति ने पत्नी के करियर और पढ़ाई में महत्वपूर्ण योगदान दिया, लेकिन बदले में उसे अपमान और तिरस्कार ही मिला।
दोनों पक्षों के बयान
पति ने कोर्ट में कहा, “मैंने अपनी पत्नी के करियर और पढ़ाई के लिए सब कुछ किया, लेकिन उसने मुझे और मेरे बेटे को छोड़ दिया।” वहीं, पत्नी ने दावा किया कि पति की बेरोजगारी और घरेलू हिंसा के कारण उसने यह कदम उठाया। हालांकि, हाईकोर्ट ने पत्नी के आरोपों को साक्ष्यों के अभाव में खारिज कर दिया और पति के पक्ष को सही माना।
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