'नरसिंहा' फिल्म की काव्यात्मक समीक्षा - मंजुला श्रीवास्तव

'नरसिंहा' फिल्म की काव्यात्मक समीक्षा  










'नरसिंह' फिल्म ने दी गवाही 
हमारे गौरवशाली इतिहास 
और समृद्ध महान परंपरा की |
कथा थी - भक्त प्रहलाद की 
और भगवान विष्णु के 
नरसिंह अवतार की |
'होलिका' भी थी जली
जो क्रूर राक्षसी बहन थी 
हिरण कश्यप की |
लेकर बैठी थी अपनी गोद में,
विष्णु भक्त प्रहलाद को,
कोशिश भी प्राण हरण की |
जिस कारण आज भी,
हम मनाते हैं, रंग भरी होली ||

शानदार था -
हिरण कश्यप का अंत भी |
फिल्म थी रोमांच और 
उत्साह से भरी |
बीच-बीच में था हास्य 
और कुछ मारधाड़ भी |
दिखलाई थी, कुछ पूर्व कथा 
और भगवान विष्णु का 
'वराह' अवतार भी |
देखने आए थे जिसे 
बच्चें -बूढ़े और नौजवान सभी |
महिलाएं थी, साड़ी 
सलवार कुर्ते वाली
और कमीज-पतलून में भी |
भले बदला हो रहन-सहन 
और सोचने का ढंग भी |
गुजर चुका है-एक चौथाई 
इक्कीसवी सदी का भी,
जीवित है, भारतीयता 
भीतर से अभी ||

थी, सबके मन में उत्सुकता 
और बच्चों-सी खुशी,
जबकि जानते थे,
कथा का सार पहले से ही |
एनीमेशन पसंद करता है,
हर कोई जी क्योंकि
दिल तो अभी बच्चा है जी ||



 
 






- मंजुला श्रीवास्तव. नई दिल्ली
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