भारत का 'सनशाइन कंट्री' टैग खतरे में पड़ गया है। वैज्ञानिकों की एक नई स्टडी ने खुलासा किया है कि पिछले तीन दशकों में देश के अधिकांश हिस्सों में धूप के घंटे तेजी से घट रहे हैं, जिससे कृषि, सोलर एनर्जी और मौसम पैटर्न पर गहरा संकट मंडरा रहा है। बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी (बीएचयू), इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मेट्रोलॉजी (आईआईटीएम) और इंडियन मेट्रोलॉजिकल डिपार्टमेंट (आईएमडी) के संयुक्त अध्ययन के अनुसार, 1988 से 2018 तक धूप के घंटों में औसतन 10 से 13% की कमी दर्ज की गई है। यह 'सोलर डिमिंग' का मामला है, जहां मोटे बादल और एरोसोल प्रदूषण सूरज की किरणों को रोक रहे हैं।
इस साल के लंबे मानसून ने इस समस्या को और उजागर कर दिया। उत्तर भारत में लगातार छाए बादलों ने कई दिनों तक सूरज को नजरों से ओझल कर दिया, जबकि पूर्वोत्तर में बारिश की कमी ने सूखे की आशंका पैदा की। स्टडी, जो हाल ही में 'नेचर साइंटिफिक रिपोर्ट्स' जर्नल में प्रकाशित हुई है, 9 भौगोलिक क्षेत्रों के 20 मौसम स्टेशनों के डेटा पर आधारित है। निष्कर्ष चौंकाने वाले हैं: हिमालयी क्षेत्र में सालाना 9.5 घंटे, पश्चिमी तट पर 8.6 घंटे, उत्तरी मैदानों में 13.1 घंटे, पूर्वी तट पर 4.9 घंटे और डेक्कन पठार पर 3.1 घंटे की कमी आई है। पूर्वोत्तर भारत में मामूली स्थिरता दिखी, लेकिन समग्र ट्रेंड चिंताजनक है।
प्रदूषण का 'ब्राउन क्लाउड' प्रभाव: बादल बन रहे दीवार
बीएचयू के प्रमुख शोधकर्ता डॉ. मनोज के. श्रीवास्तव ने बताया, "एरोसोल कण – जो वाहनों, उद्योगों और बायोमास जलाने से निकलते हैं – बादलों के नाभिक का काम करते हैं। ये छोटे कण बादलों को घना और लंबे समय तक टिकाऊ बनाते हैं, जिससे सूरज की किरणें जमीन तक कम पहुंच पाती हैं। भारत में एरोसोल प्रदूषण वैश्विक औसत से दोगुना है, जो दक्षिण एशिया को 'ब्राउन क्लाउड' के रूप में बदनाम कर चुका है।" अध्ययन में पाया गया कि सूखे महीनों (अक्टूबर-मई) में धूप में हल्की बढ़ोतरी हुई, लेकिन मानसून (जून-सितंबर) में गिरावट सबसे तेज रही। 2025 के मानसून में दिल्ली का एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) 300 से ऊपर रहने से बादल और गाढ़े हो गए, जिसने समस्या को और गंभीर बना दिया।
आईआईटीएम के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, "शहरीकरण और औद्योगीकरण ने एरोसोल को बढ़ावा दिया है। हिमालयी ग्लेशियरों का तेजी से पिघलना और अनियमित वर्षा पैटर्न इसी का नतीजा हैं। अगर यह ट्रेंड जारी रहा, तो जलवायु मॉडलिंग और पूर्वानुमान प्रभावित होंगे।" स्टडी में सिफारिश की गई है कि एरोसोल मॉनिटरिंग नेटवर्क को मजबूत किया जाए, प्रदूषण नियंत्रण कानूनों को सख्ती से लागू किया जाए और हरित ऊर्जा परियोजनाओं में हाइब्रिड सिस्टम अपनाए जाएं।
सोलर एनर्जी पर खतरा: 2030 का लक्ष्य मुश्किल
भारत दुनिया का सबसे तेज बढ़ता सोलर मार्केट है, जहां 2030 तक 500 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा का लक्ष्य है। लेकिन धूप की कमी से सोलर पैनलों की दक्षता 5-7% तक गिर सकती है। विशेषज्ञों का अनुमान है कि 10% धूप घंटों की कमी से सालाना अरबों रुपये का नुकसान हो सकता है। राजस्थान और गुजरात जैसे सोलर हब पहले से ही कम विकिरण की शिकायत कर रहे हैं।
कृषि और किसानों पर बुरा असर: फसल चक्र बिगड़ रहे
कृषि पर सबसे ज्यादा मार पड़ रही है। धान, गेहूं और सब्जियों जैसी फसलों में प्रकाश संश्लेषण प्रभावित हो रहा है, जिससे उपज 10-15% कम हो सकती है। बिहार के एक किसान ने कहा, "इस साल बादलों ने फसलें झुलसाईं। सूरज न दिखने से बीमारियां फैलीं।" स्टडी के अनुसार, उत्तरी मैदानों में सबसे ज्यादा नुकसान हो रहा है, जहां 13 घंटे सालाना कमी से सिंचाई और मिट्टी की उर्वरता प्रभावित हो रही है।
क्या करें सरकार और हम? विशेषज्ञों की सलाह
वैज्ञानिकों ने तत्काल कदम उठाने की वकालत की है:
- प्रदूषण कंट्रोल: इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा, बायोमास जलाने पर रोक।
- वनरोपण अभियान: शहरों में ग्रीन कवर बढ़ाकर एरोसोल को कम करें।
- सोलर स्ट्रैटेजी: हाइब्रिड (सोलर-विंड) मॉडल अपनाएं और रीयल-टाइम धूप डेटा पर आधारित प्लानिंग।
भारत सरकार की 'क्लाइमेट रिसर्च एजेंडा 2030' में ऐसे मुद्दों पर फोकस है, लेकिन क्रियान्वयन धीमा है। अगर समय रहते हस्तक्षेप न हुआ, तो 'सनशाइन स्टेट' का सपना धुंधला हो जाएगा। यह स्टडी न केवल चेतावनी है, बल्कि कार्रवाई का आह्वान भी।

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