बालाघाट, मध्य प्रदेश | 9 अक्टूबर 2025। महाकौशल के बालाघाट जिले में वनग्रामों के विस्थापन, जल-जंगल-जमीन के अधिकारों और प्रशासनिक अनियमितताओं के खिलाफ आज से दो दिवसीय 'घेरा डालो-डेरा डालो' आंदोलन की शुरुआत हो गई। जन संघर्ष मोर्चा महाकौशल के बैनर तले आयोजित इस आंदोलन में बालाघाट, मंडला और डिंडोरी जिले के वनग्रामों से सैकड़ों आदिवासी ग्रामीण जिला मुख्यालय पहुंचे। अंबेडकर चौक पर जनसुनवाई का आयोजन किया गया, जहां ग्रामीणों ने अपनी व्यथाएं साझा कीं। यह आंदोलन वन अधिकार अधिनियम 2006 का उल्लंघन और पूंजीपतियों को प्राकृतिक संसाधनों की लूट की अनुमति देने के खिलाफ एकजुट संघर्ष का प्रतीक बन गया है।
आंदोलन के पहले दिन ग्रामीणों ने बैहर क्षेत्र के 55 वनखंडों को रिजर्व फॉरेस्ट घोषित करने की प्रक्रिया का विरोध दर्ज किया। संगठनों का आरोप है कि इससे आदिवासियों का प्रवेश अधिकार समाप्त हो जाएगा, जबकि वन विभाग का दावा है कि ऐसा नहीं होगा। मध्य प्रदेश आदिवासी विकास परिषद के अध्यक्ष दिनेश धुर्वे ने कहा, "वन अधिकार देने की बजाय बेदखली की कार्रवाई बर्दाश्त नहीं की जाएगी। बैहर के 55 गांवों को विस्थापित करने की साजिश आदिवासी संस्कृति और आजीविका को नष्ट कर देगी।" जन संघर्ष मोर्चा महाकौशल के विवेक पवार ने जोर देकर कहा कि यह संघर्ष किसी एक संगठन का नहीं, बल्कि आदिवासी समाज के सभी संगठनों का है।
जनसुनवाई में उजागर हुईं प्रमुख समस्याएं
जनसुनवाई में बालाघाट, सिवनी, मंडला, डिंडोरी और जबलपुर जिलों के ग्रामीणों ने विस्थापन, प्राकृतिक संपदा की लूट, वन विभाग की तानाशाही और मुआवजे की अनियमितताओं की कथा सुनाई। प्रमुख मुद्दे इस प्रकार हैं:
- वनग्राम विस्थापन का खतरा: बरगी बांध और अन्य परियोजनाओं से पहले ही हजारों परिवार प्रभावित हो चुके हैं। अब बैहर क्षेत्र में रिजर्व फॉरेस्ट बनाने से 55 गांवों के निवासी बेघर हो जाएंगे। बरगी बांध विस्थापित एवं प्रभावित संघ के राजकुमार सिन्हा ने कहा, "जब पूरा जंगल वन अधिकार कानून के तहत सामुदायिक वन में शामिल हो रहा है, तो वन विभाग का 'वन व्यवस्थापन' का दावा झूठा है।"
- जल-जंगल-जमीन की लूट: क्षेत्र में लघु और गौण खनिज, जंगल और जमीन की प्रचुरता के बावजूद पूंजीपतियों को खुली छूट दी जा रही है। इससे आदिवासियों का श्रम शोषण हो रहा है और जीवन कठिन बन रहा है। केंद्रीय कमेटी सदस्य राम नारायण कुररिया ने बताया, "शासन प्राकृतिक संपदा का अंधाधुंध दोहन कर रहा है, जबकि संवैधानिक अधिकारों की नीतियां कागजों तक सीमित हैं।"
- प्रशासनिक लापरवाही: वन और राजस्व विभाग के आंकड़ों में भ्रांतियां हैं, जो विस्थापन को तेज कर रही हैं। जिला पंचायत सदस्य मंशा राम मंडावी ने मांग की कि पूर्व मुआवजे और पट्टों की प्रक्रिया पूरी की जाए। अंजना कुररिया ने महिलाओं की ओर से कहा, "हमारी संस्कृति जंगल से जुड़ी है; इसे सौंपने की तैयारी समाज को बर्बाद कर देगी।"
आंदोलन में मध्यप्रदेश आदिवासी एकता महासभा, चुटका परमाणु विरोधी संघर्ष समिति, मध्य प्रदेश किसान संगठन, पेसा सशक्तिकरण मिशन, सर्व आदिवासी समाज संगठन बालाघाट सहित कई संगठन शामिल हुए। संगठनों ने वन अधिकार अधिनियम 2006 के तहत पट्टा वितरण, विस्थापन नीति का रद्दीकरण और पूंजीपतियों को संसाधनों की छूट बंद करने की मांग की।
आंदोलन का समापन: ज्ञापन सौंपा जाएगा
आज (9 अक्टूबर) शाम को तीनों जिलों से आई समस्याओं पर चर्चा के बाद आंदोलन का समापन होगा। कल ज्ञापन जिला प्रशासन को सौंपा जाएगा, जिसमें मांगें राष्ट्रपति और राज्यपाल तक पहुंचाई जाएंगी। उपस्थित ग्रामीणों ने चेतावनी दी कि मांगें पूरी न होने पर संघर्ष तेज होगा। यह आंदोलन मध्य प्रदेश के वनांचल क्षेत्रों में विस्थापन विरोधी लहर को मजबूत करने का संकेत दे रहा है, जहां हाल के वर्षों में कन्हा टाइगर रिजर्व जैसे क्षेत्रों में भी समान विवाद उभरे हैं।
बालाघाट जिला, जो 80% वन क्षेत्र वाला मध्य प्रदेश का सबसे घना जंगल वाला जिला है, आदिवासी बहुल है। यहां कन्हा नेशनल पार्क जैसी जैव विविधता की धरोहर है, लेकिन विकास परियोजनाओं ने विस्थापन की समस्या को जन्म दिया है। विशेषज्ञों के अनुसार, वन अधिकार अधिनियम का सही क्रियान्वयन ही समाधान है। प्रशासन ने जनसुनवाई में भाग लेने का आश्वासन दिया है, लेकिन ग्रामीण सतर्क हैं।

إرسال تعليق