बसंत मिश्र की कविता : पिता जी बेपरवाह
कविता : पिता जी बेपरवाह - बसंत मिश्र पिता जी बेपरवाह होते जरूर हैं, खुद की जरूरत को पूरा करने के…
कविता : पिता जी बेपरवाह - बसंत मिश्र पिता जी बेपरवाह होते जरूर हैं, खुद की जरूरत को पूरा करने के…
कविता : खूंटा तोड़ना जब तक खूंटे पर बंधी होती है गाय या बाड़े के भीतर रहती है उसकी अच्छी सेवा-सुश्रु…
कविता : असली कवि कुछ लोग कविता लिखते हैं कुछ लोग कविता कहते हैं मगर मैं कुछ ऐसे लोगों को जानता हूं…
भुवनेश्वर। भुवनेश्वर में आयोजित एक साहित्य महोत्सव में जुटे कई लेखक इस बात पर चर्चा कर रहे हैं कि …
दादू जी एक रोज इक बच्ची आई हो गुस्से में लाल, बेरहमी से खींचे उसने दादू जी के गाल। बोली नूडल नहीं ख…
चंडीगढ़। ‘आपका बंटी’, ‘महाभोज’ जैसे कालजयी उपन्यास लिखने वाली हिंदी की सुप्रसिद्ध कहानीकार मन्नू …
गीत मेघा, अब तो बरसो रे! बरसो रे! बरसो रे! मेघा, अब तो बरसो रे! प्यासी नदिया, ताल-तलैया प्यासे पर्व…
नई दिल्ली/अक्षर सत्ता/ऑनलाइन। कोरोना संक्रमण के खतरे को देखते हुए स्कूल-कालेज बंद हैं और बच्चों के …
19 जून, 1871 को मध्य प्रदेश के एक जिले दमोह के पथरिया में जन्मे सप्रेजी एक बहुआयामी व्यक्तित्व के ध…
रिपोर्टर अमित सोनी जबलपुर/अक्षर सत्ता/ऑनलाइन। नकारात्मक एवं द्वेष पूर्ण साहित्य से परहेज कर रचनाक…
जबलपुर/अक्षर सत्ता/ऑनलाइन। प्रतिभा को यदि पंख लगते हैं तो वह आसमान की ऊंचाइयों को भी छोटा कर देत…
बाल कविता पर्यावरण पर्यावरण की रक्षा करना, हम सबकी है जिम्मेदारी। जो इसे किया प्रदूषित, होगी खत्म …
बाल कविता चिड़िया दाना चुग्गा चुगने को, आंगन में आती चिड़िया। मीठा सा प्यारा कलरव, आकर हमें सुनाती च…
बाल कविता धरती को सुंदर बनाएं आओ हम सब पेड़ लगाएं, धरती को सुंदर बनाएं। पेड़ हमें जीवन देते, ऑक्सीजन …
बाल कविता धरती-आकाश पेड़-पौधे कट रहे, आसमां है धुंआ-धुंआ। नदी निर्झर ताल पोखर, रह गए हैं अब कहां? च…
कविता सब जगह वो है सब जगह वो मदद को, कहां नहीं है तुम दौड़कर पहुंचना लगे जहां नहीं है बोझिल मन से घू…
कविता रूठ कर ना छोड़... क्यूं खटेगा मुफ्त में नित बेवजह आराम कर, खूब होंगी मिन्नतें तब अन्नदाता काम …
बचपन की सीख बचपन होता अलबेला, फिकर नहीं किसी बेला। पढ़ो-लिखो ऊंचा-कूदो, घर के अंदर खेलो लूडो। सीखो ब…
बाल कविता कट्टो बिल्ली कट्टो बिल्ली बड़ी चिबिल्ली सौ-सौ चूहे खाती, लार टपकती रहती टप-टप फिर भी बाज…