हकीकत बयां करती रवि प्रधान की कविता 

अच्छे दिन आ सकते थे लेकिन



रवि प्रधान
गांव से जो जो शहर गए लोग।
तिनका-तिनका बिखर गए लोग।।
कक्का काकी बऊ और दद्दा।
जैसे संबोधन बिसर गए लोग।।
चौपालों पे रोज़ ठहाके लगाने वाले।
कालोनियां में आज अखर गए लोग।।
फैशन की अंधी चकाचौंध में।
आधे-आधे उघर गए लोग।।
जिसे ओढ़कर सपने  देखे थे।
उसी रजाई को कुतर गए लोग।। 
गरीबी पे तंज कसने वाले।
खुद की नजर से उतर गए लोग।।
हमने रोटी ही तो मांगी थी।
सुनते ही कैसे विफर गए लोग।। 
अच्छे दिन आ सकते थे लेकिन ।
अपने वादे से खुद मुकर गए लोग।।
- रवि प्रधान
( रवि प्रधान, ऐसे साहित्यकार हैं जो बंधी-बंधाई लकीरों पर नहीं लिखते, और जब लिखते हैं तो कई सीमायें तोड़कर लिखते हैं। )


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