बरगी नगर, जबलपुर। जिले के बरगी विकासखंड के ग्राम मनकेड़ी में दीपावली के बाद भाई दूज पर आयोजित होने वाला *चंडी मड़ई मेला* गांव की एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर बन चुका है। पिछले 150 वर्षों से, यहां एक मुस्लिम परिवार अपनी पुरानी परंपरा को निभाते हुए इस मेले का आयोजन कर रहा है। मालगुजार हफीज खान और वरिष्ठ पत्रकार परवेज खान ने बताया कि यह मेला उनके पूर्वज खुदा बख्श, शेख कल्लू और शेख अहमद खान द्वारा शुरू किया गया था और तब से यह परंपरा निरंतर जारी है।
- सामाजिक सद्भाव का प्रतीक: दर्जनों गांवों को भेजा जाता है न्योता
ग्राम पंडा (बैगा) संतोष आदिवासी और ग्राम कोटवार डुमारी लाल झरिया ने बताया कि मेले के आयोजन के लिए आसपास के कई गांवों को पारंपरिक हल्दी, चावल और सुपारी भेजकर न्योता दिया जाता है। इनमें सहजपुरी, चौरई, रीमा, नयागांव, टेमर गुल्ला पाठ, भोंगा और हरदुली जैसे गांव शामिल हैं। आयोजन के दिन गांव की ग्वालटोली सांस्कृतिक गीत और नृत्य के साथ मालगुजार परिवार के निवास तक जाती है, जहां से सभी लोग मेले के मुख्य स्थल तक पहुँचते हैं। वहां परंपरागत विधि-विधान के साथ चंडी माता की पूजा-अर्चना की जाती है, जिसके बाद गांव के बैगा द्वारा माता को ब्याहने की रस्म निभाई जाती है।
- पान खिलाकर स्वागत और पारंपरिक भव्यता
मेले में आमंत्रित मेहमानों और ग्वालटोलियों का स्वागत पान खिलाकर किया जाता है। मेले के दौरान मालगुजार परिवार द्वारा विशेष नृत्य प्रदर्शन पर ग्वालटोलियों को प्रसाद और बख्शीश भी दी जाती है। इस अवसर पर गांव के प्रमुख लोग दिमाग प्रसाद, डुमारी लाल सोनी, विमल नेताम, रामाधार आदिवासी, कृपाल आदिवासी, भूरा झरिया, और मालगुजार परिवार के सदस्य फिरोज खान और अफरोज खान अपना सहयोग देते हैं। यह आयोजन सांप्रदायिक सौहार्द और ग्राम समुदाय की एकता का अद्वितीय उदाहरण प्रस्तुत करता है।
मनकेडी का यह चंडी मड़ई मेला न सिर्फ धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि इस क्षेत्र में हिंदू-मुस्लिम सद्भाव और पारंपरिक विरासत को सहेजने का भी प्रतीक बन गया है।
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