जब 1971 में भारत के साथ खड़े होकर रूस ने समूचे विश्व की हवा निकाल दी थी

भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध की नाल बज चुकी है। पाक ने भारतीय फौजी प्रतिष्ठानों पर कायराना हमला कर, जंग की चिंगारी को भड़का दिया है। 'ऑपरेशन सिंदूर' के तहत भारत ने आतंक की जड़ों पर वार किया, परंतु पाकिस्तान ने पलटवार की नाकाम कोशिश की। इस बार भारत की आक्रामक रणनीति ने तय कर लिया है कि अब पाकिस्तान के पास बच निकलने की कोई राह नहीं बची। न ही इस बार वह पुराना सरपरस्त, जो 1971 में उसके लिए ढाल बना था, उसकी मदद को आगे आएगा — जी हां, अमेरिका।


1971 के युद्ध में अमेरिका ने भारत की पीठ में खंजर घोंपा था और खुले तौर पर पाकिस्तान की तरफदारी की थी। लेकिन अब भारत की चतुर राजनयिक चालों ने परिदृश्य ही बदल डाला है। अमेरिका अब इस टकराव से खुद को पूरी तरह अलग रख रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने युद्ध से पहले ही समय के रथ को ऐसा मोड़ा है कि पूरी कूटनीतिक बाजी भारत के पक्ष में झुक चुकी है।

अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वेंस ने साफ शब्दों में अमेरिका का रुख स्पष्ट कर दिया है — भारत-पाकिस्तान युद्ध से अमेरिका का कोई सरोकार नहीं। यह बयान अपने आप में संकेत है कि अब पाकिस्तान को अमेरिका की 1971 जैसी छाया भी मयस्सर नहीं होगी। उस दौर में इंदिरा गांधी के नेतृत्व में भारत ने रूस की मित्रता का सहारा लिया था, और आज वही इतिहास फिर से दोहराया जा रहा है। फर्क बस इतना है कि अब पाकिस्तान की पीठ पर अमेरिका का हाथ नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय मंच पर उसकी तन्हाई है।

अब बात करें उस ऐतिहासिक पल की, जब रूस ने निक्सन की कुटिलता का मुंहतोड़ जवाब दिया था।

1971 की उस ऐतिहासिक टकराव के समय अमेरिका के राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन थे। पाकिस्तान के प्रति उनका झुकाव इतना था कि उन्होंने भारत को दबाव में लाने की मंशा से अमेरिका की सातवीं नौसेना बेड़ा बंगाल की खाड़ी में तैनात कर दिया। इसका मकसद था भारत को डराना, ताकि वह बांग्लादेश की आजादी की लड़ाई से पीछे हट जाए। इंदिरा गांधी उस समय एक कठिन घड़ी से गुजर रही थीं।

तभी रूस ने मित्रता का असली अर्थ साबित करते हुए, हिंद महासागर की गहराइयों में अपनी परमाणु पनडुब्बी भेज दी। रूस की इस रणनीतिक चाल ने अमेरिका की हेकड़ी निकाल दी और उसकी सातवीं फ्लीट को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया। इस कदम ने न केवल पाकिस्तान बल्कि उसके आका अमेरिका के भी होश उड़ा दिए।

अब वक्त वही है, पर समीकरण बदल चुके हैं। पाकिस्तान अब अकेला खड़ा है, और भारत की कूटनीति ने उसे वैश्विक मंच पर बिलकुल अलग-थलग कर दिया है।

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