30 मई, हिंदी पत्रकारिता दिवस: डिजिटल युग में सत्य और निष्पक्षता की चुनौती लेखक - हरिशंकर पाराशर, कटनी

30 मई, 1826 को प्रकाशित उदन्त मार्तण्ड के प्रथम अंक की स्मृति में मनाया जाने वाला हिंदी पत्रकारिता दिवस, हिंदी पत्रकारिता के 199 वर्षों के गौरवशाली इतिहास का प्रतीक है। पंडित जुगल किशोर शुक्ल द्वारा शुरू किया गया यह समाचार पत्र हिंदी भाषी समाज को स्वतंत्रता संग्राम के विचारों से जोड़ने का पहला सशक्त प्रयास था।



लेखक - हरिशंकर पाराशर, कटनी

आज, डिजिटल युग में हिंदी पत्रकारिता ने नई ऊंचाइयों को छुआ है, परंतु इसके साथ कई नई चुनौतियाँ भी सामने आई हैं। यह लेख डिजिटल पत्रकारिता के योगदान, उससे जुड़ी चुनौतियों, और इसके भविष्य की दिशा पर प्रकाश डालता है।


डिजिटल पत्रकारिता: अवसरों का नया क्षितिज

डिजिटल क्रांति ने हिंदी पत्रकारिता को एक वैश्विक मंच प्रदान किया है। समाचार पत्रों के डिजिटल संस्करण, न्यूज़ पोर्टल्स, यूट्यूब चैनल्स और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स — जैसे X (पूर्व में ट्विटर) और फेसबुक — ने समाचारों को अधिक त्वरित, सुलभ और सर्वव्यापी बना दिया है। इन माध्यमों ने ग्रामीण और शहरी पाठकों के बीच की दूरी को पाटने का कार्य किया है।

पॉडकास्ट, वीडियो स्टोरीटेलिंग और इन्फोग्राफिक्स जैसे आधुनिक प्रारूपों ने हिंदी पत्रकारिता को और अधिक आकर्षक, समावेशी और संवादात्मक बनाया है। डिजिटल पत्रकारिता ने सामाजिक जागरूकता, शिक्षा, पर्यावरण जैसे मुद्दों को राष्ट्रीय विमर्श में स्थान दिया है, जिससे जनमत को दिशा देने में मदद मिली है।

खोजी पत्रकारिता — जैसे कि भ्रष्टाचार और मानव तस्करी पर आधारित स्टिंग ऑपरेशन — ने समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। साथ ही, सोशल मीडिया के माध्यम से आम नागरिकों की आवाज अब सीधे पत्रकारों तक पहुँच रही है, जिससे पत्रकारिता अधिक लोकतांत्रिक बन गई है।


चुनौतियाँ: विश्वसनीयता का संकट

डिजिटल युग ने जहां पत्रकारिता को सशक्त बनाया है, वहीं यह कई गंभीर चुनौतियाँ भी लेकर आया है। सबसे बड़ी चिंता फर्जी खबरों (fake news) और गलत सूचनाओं के प्रसार की है, जो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल होकर सामाजिक तनाव और भ्रम को जन्म देती हैं।

टीआरपी और क्लिकबेट की दौड़ में कई डिजिटल प्लेटफॉर्म्स सनसनीखेज, पक्षपातपूर्ण और अपुष्ट सामग्री परोस रहे हैं, जिससे पत्रकारिता की विश्वसनीयता पर प्रश्नचिह्न लगते हैं। पूंजीवादी प्रभाव और विज्ञापनदाताओं का दबाव संपादकीय स्वतंत्रता को सीमित करता है।

डिजिटल पत्रकारों को विशेष रूप से संवेदनशील विषयों पर कार्य करते समय साइबर हमलों और ट्रोलिंग का सामना करना पड़ता है। साथ ही, छोटे डिजिटल न्यूज़ पोर्टल्स को तकनीकी और वित्तीय संसाधनों की कमी के कारण गुणवत्ता बनाए रखने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।


भविष्य की दिशा: नैतिकता और नवाचार

हिंदी डिजिटल पत्रकारिता का भविष्य उज्ज्वल है — बशर्ते वह सत्य, निष्पक्षता और सामाजिक उत्तरदायित्व के मूल सिद्धांतों पर अडिग रहे। विश्वसनीयता बनाए रखने के लिए मजबूत फैक्ट-चेकिंग तंत्र और आचार संहिता का पालन अत्यंत आवश्यक है।

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, डेटा एनालिटिक्स जैसे तकनीकी नवाचार समाचार प्रस्तुति और विश्लेषण की गुणवत्ता को नई ऊँचाइयाँ दे सकते हैं। साथ ही, पत्रकारों को प्रशिक्षण, वित्तीय सहयोग और साइबर सुरक्षा की सुविधा देना समय की आवश्यकता है।

पाठकों की भूमिका भी अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। सदस्यता आधारित मॉडल, क्राउडफंडिंग और सशुल्क कंटेंट जैसे माध्यमों से पाठक गुणवत्तापूर्ण पत्रकारिता को समर्थन दे सकते हैं। डिजिटल युग की पत्रकारिता को न केवल तकनीकी रूप से सक्षम, बल्कि सामाजिक रूप से उत्तरदायी भी बनाना होगा।


हिंदी पत्रकारिता दिवस 2025: एक संकल्प

हिंदी पत्रकारिता दिवस 2025 केवल उदन्त मार्तण्ड की स्मृति का अवसर नहीं है, बल्कि यह डिजिटल युग में पत्रकारिता की नई जिम्मेदारियों पर विचार करने का भी मंच है।

इस दिन संगोष्ठियों — जैसे “डिजिटल पत्रकारिता और नैतिकता” — का आयोजन, और पत्रकारों को रामनाथ गोयनका पुरस्कार जैसे सम्मानों से प्रोत्साहित करना आवश्यक है। साथ ही, #हिंदी_पत्रकारिता_दिवस जैसे सोशल मीडिया अभियानों के माध्यम से जनता को जोड़ा जा सकता है।

हिंदी डिजिटल पत्रकारिता लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है, जो समाज को सूचित, सजग और सशक्त बनाता है। यह सत्य की खोज और जन-आवाज को बुलंद करने का माध्यम है। लेकिन फर्जी खबरें, सनसनीखेजता और पूंजीवादी दबाव जैसे संकटों से पार पाने के लिए इसे नैतिकता और नवाचार का मार्ग अपनाना होगा।

इस हिंदी पत्रकारिता दिवस पर, आइए हम यह संकल्प लें कि डिजिटल पत्रकारिता को सत्य, निष्पक्षता और सामाजिक जिम्मेदारी का प्रतीक बनाएंगे।

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