बरगी नगर, जबलपुर।
बरगी बांध विस्थापन के 50 वर्षों बाद भी अधूरी पुनर्वास नीति से त्रस्त ग्रामीण अब स्वयं संगठित होकर अपनी लड़ाई लड़ने को तैयार हैं। ‘सच्चा प्रयास’ संस्था के नेतृत्व में 12 गांवों से सामुदायिक सहयोग की शुरुआत की गई है, जिसका उद्देश्य विस्थापितों के जल-जंगल-जमीन, आवास और अधिकारों की लड़ाई को एकजुट होकर आगे बढ़ाना है।
🔴 क्या है मामला?
बरगी बांध, जिसे आधिकारिक तौर पर रानी अवंती बाई लोधी सागर परियोजना के नाम से जाना जाता है, मध्य प्रदेश का एक प्रमुख जलाशय है। इस परियोजना से प्रभावित हुए सैकड़ों गांवों को विस्थापित किया गया, लेकिन पांच दशक बीत जाने के बाद भी अधिकांश प्रभावित परिवार मूलभूत सुविधाओं और वैधानिक अधिकारों से वंचित हैं। कई परिवार आज भी गैर-मान्यता प्राप्त बस्तियों में रह रहे हैं — किसी की ज़मीन वन विभाग के अधीन है तो किसी की सिंचाई विभाग की। कुछ गांव आज तक राजस्व रिकॉर्ड में शामिल नहीं हो सके हैं।
📌 सच्चा प्रयास की अगुवाई में उठेगा समुदाय
"अब और इंतजार नहीं", यही कहकर 12 गांवों के ग्रामीण ‘सच्चा प्रयास’ समिति के नेतृत्व में संगठित हो रहे हैं। परवेज खान, मगरधा के सरपंच इंदर सिंह तिलगाम, बिजोरा के पंच नन्हेंलाल रजक और मुन्नालाल जैसे स्थानीय नेता गांव-गांव जाकर बैठकें कर रहे हैं। इन बैठकों में विस्थापितों की वास्तविक समस्याओं को चिन्हित किया जा रहा है और सामुदायिक नेतृत्व को मजबूत कर समाधान खोजने का संकल्प लिया जा रहा है।
⚠️ "पहचान ही मिटा दी गई है" — विस्थापितों की पीड़ा
विस्थापित ग्रामीणों का सबसे बड़ा दर्द यही है कि उनके पूर्वजों की भूमि, पुश्तैनी मकान और गांव डूब क्षेत्र में जलमग्न हो गए। आज वे जहां रह रहे हैं, वहां उनकी उपस्थिति को “अवैध कब्जा” करार दिया गया है। कई परिवारों को तो अतिक्रमण प्रमाण पत्र तक दे दिए गए हैं।
🧩 ये होंगे मुख्य मुद्दे:
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स्थायी भूमि अधिकार: अतिक्रमण या अवैध निवासी की पहचान को खत्म कर वैध मालिकाना हक।
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वन अधिकार पट्टे: वन क्षेत्र में बसे विस्थापितों को पट्टा अधिकार देना।
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राजस्व मान्यता: विस्थापित बस्तियों को राजस्व रिकॉर्ड में शामिल करना।
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सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) की पहुंच।
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शिक्षा, स्वास्थ्य और सुरक्षा जैसी मूलभूत सुविधाओं की बहाली।
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मुख्यमंत्री भू अधिकार अभियान से जोड़ने की मांग।
📣 ग्रामीणों की जुबानी: “अब मुद्दे हम खुद तय करेंगे”
सच्चा प्रयास से जुड़े कार्यकर्ताओं का कहना है कि यह सहयोग केवल समाधान की दिशा में उठाया गया कदम है। ग्रामीण अब अपने मुद्दे खुद तय करेंगे, समाधान खुद तलाशेंगे और नेतृत्व भी खुद विकसित करेंगे।
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