'जमानत के लिए एक साल जेल में रहना जरूरी नहीं...', सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने मनी लॉन्ड्रिंग के मामलों में जमानत के लिए एक साल तक जेल में रहने की अनिवार्यता को खारिज करते हुए कारोबारी अनवर ढेबर को राहत दी है। जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने मंगलवार, 20 मई 2025 को छत्तीसगढ़ के कथित 2,000 करोड़ रुपये के शराब घोटाले से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामले में ढेबर को सशर्त जमानत दी। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि जमानत के लिए एक साल जेल में रहने का कोई नियम नहीं है।


सशर्त जमानत और कोर्ट की टिप्पणी
अनवर ढेबर को 8 अगस्त 2024 को गिरफ्तार किया गया था और वह 9 महीने से अधिक समय से जेल में थे। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस मामले में 40 गवाह हैं और जांच अभी जारी है। संबंधित मुख्य मामले में 450 गवाह हैं, जिनमें अभी तक आरोप तय नहीं हुए हैं, इसलिए मुकदमे की शुरुआत में देरी की संभावना है। मामले में अधिकतम सजा 7 साल है। कोर्ट ने ढेबर को कड़ी शर्तों के साथ जमानत दी, जिसमें पासपोर्ट जमा करना और मुकदमे में सहयोग करना शामिल है। कोर्ट ने निचली अदालत को निर्देश दिया कि वह एक सप्ताह के भीतर शर्तों के अनुसार ढेबर को रिहा करे।

ईडी का विरोध बेअसर
प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने जमानत का विरोध करते हुए तर्क दिया कि ढेबर को अभी जेल में एक साल भी पूरा नहीं हुआ है और वह एक प्रभावशाली व्यक्ति हैं, जो मुकदमे को प्रभावित कर सकते हैं। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने ईडी के तर्क को खारिज करते हुए कहा कि जमानत की शर्तें सुनिश्चित करेंगी कि मुकदमा प्रभावित न हो।

क्या है शराब घोटाला मामला
अनवर ढेबर, रायपुर के मेयर और कांग्रेस नेता एजाज ढेबर के भाई हैं। ईडी ने आयकर विभाग की जांच के आधार पर 2019 से छत्तीसगढ़ और अन्य राज्यों में चल रहे कथित शराब घोटाले में ढेबर को पहला गिरफ्तार किया था। ईडी का दावा है कि इस घोटाले से 2,161 करोड़ रुपये की अवैध कमाई हुई, जो राज्य सरकार को मिलनी चाहिए थी। इसमें बड़े अधिकारी, नेता, उनके सहयोगी और आबकारी विभाग के कर्मचारी शामिल हैं।

धोखाधड़ी मामले में बुजुर्ग को राहत
सुप्रीम कोर्ट ने एक अन्य मामले में 65 वर्षीय आंशिक रूप से नेत्रहीन व्यक्ति को भी जमानत दी। यह व्यक्ति धोखाधड़ी और आपराधिक साजिश (धारा 420, 467, 468, 471 और 120बी) के आरोप में 7 महीने से जेल में था। जस्टिस ओका और जस्टिस भुइयां की पीठ ने 19 मई 2025 के आदेश में कहा कि ऐसे मामलों में जमानत के लिए सुप्रीम कोर्ट तक आना दुर्भाग्यपूर्ण है। कोर्ट ने निर्देश दिया कि निचली अदालत एक सप्ताह के भीतर उचित शर्तों के साथ, जैसे हर तारीख पर कोर्ट में पेश होना और मुकदमे में सहयोग करना, आरोपी को रिहा करे।

यह फैसला मनी लॉन्ड्रिंग और धोखाधड़ी जैसे मामलों में जमानत प्रक्रिया को और स्पष्ट करता है, साथ ही यह दर्शाता है कि कोर्ट व्यक्तिगत परिस्थितियों को ध्यान में रखकर मानवीय दृष्टिकोण अपनाता है।

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