सभी महिलाओं के लिए अनिवार्य हो करवा चौथ, याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाई फटकार

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने एक अजीबोगरीब याचिका को खारिज करते हुए याचिकाकर्ता को कड़ी फटकार लगाई, जिसमें देश की सभी महिलाओं के लिए करवा चौथ का व्रत अनिवार्य करने की मांग की गई थी। जस्टिस सूर्यकांत की अगुआई वाली पीठ ने इस याचिका को 'बेतुका' करार देते हुए कहा कि ऐसी याचिकाएं कोर्ट का समय बर्बाद करती हैं और भविष्य में ऐसी अर्जी दाखिल करने पर उचित कार्रवाई की जा सकती है।


याचिका में क्या थी मांग

हरियाणा के नरेंद्र कुमार मल्होत्रा ने पंजाब-हरियाणा हाई कोर्ट में याचिका दाखिल कर मांग की थी कि सभी महिलाओं, चाहे वे तलाकशुदा हों, विधवा हों या लिव-इन रिलेशनशिप में रह रही हों, के लिए करवा चौथ का व्रत अनिवार्य किया जाए। याचिकाकर्ता ने केंद्र और हरियाणा सरकार को निर्देश देने की मांग की थी कि वे इस व्रत को लागू करने के लिए सख्त नियम बनाएं और इसका पालन न करने वाली महिलाओं के लिए सजा का प्रावधान करें। हाई कोर्ट ने इस याचिका को खारिज करते हुए याचिकाकर्ता पर कोर्ट का समय बर्बाद करने के लिए 1,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया था। इसके बाद मल्होत्रा ने सुप्रीम कोर्ट में इस फैसले को चुनौती दी।

सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी
सोमवार, 19 मई 2025 को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी कि सरकार इस मामले में कोई कदम नहीं उठा रही है। इस पर जस्टिस सूर्यकांत की पीठ ने सख्त रुख अपनाते हुए कहा, "यह याचिका पूरी तरह से निरर्थक है। हाई कोर्ट ने इसे पहले ही खारिज कर दिया था और इसे बेतुका करार दिया था। ऐसी याचिकाएं कोर्ट का कीमती समय बर्बाद करती हैं।" कोर्ट ने चेतावनी दी कि यदि याचिकाकर्ता ने भविष्य में ऐसी याचिका दोबारा दाखिल की, तो उनके खिलाफ उचित कार्रवाई की जाएगी।

कोर्ट का समय बर्बाद करने पर फटकार
सुप्रीम कोर्ट ने याचिका को खारिज करते हुए स्पष्ट किया कि इस तरह की मांगें न केवल अव्यवहारिक हैं, बल्कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता और पसंद के अधिकार का भी उल्लंघन करती हैं। कोर्ट ने याचिकाकर्ता के तर्कों को तथ्यहीन और आधारहीन माना। इस फैसले से सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर यह संदेश दिया है कि न्यायिक प्रणाली का दुरुपयोग करने वाली याचिकाओं को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।

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