चुनाव आयोग का बड़ा कदम: 345 निष्क्रिय राजनीतिक दलों को सूची से हटाने की कार्रवाई शुरू

छह वर्षों से चुनावी गतिविधियों से दूर दलों को भेजा गया कारण बताओ नोटिस

नई दिल्ली, 26 जून 2025 | भारत के चुनाव आयोग ने लोकतांत्रिक व्यवस्था को पारदर्शी और जवाबदेह बनाए रखने की दिशा में महत्वपूर्ण पहल करते हुए 345 पंजीकृत लेकिन गैर-मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों को अपनी सूची से हटाने की कार्यवाही शुरू कर दी है। ये वे दल हैं जो पिछले छह वर्षों में एक भी चुनाव नहीं लड़े और आयोग द्वारा तय की गई न्यूनतम गतिविधि की शर्तें पूरी नहीं कर सके।



🗳 निष्क्रियता की सजा: चुनाव नहीं लड़ा, पहचान खत्म

मुख्य चुनाव आयुक्त श्री ज्ञानेश कुमार, चुनाव आयुक्त डॉ. सुखबीर सिंह संधू और डॉ. विवेक जोशी की अध्यक्षता में यह फैसला लिया गया।
आयोग के अनुसार, इन राजनीतिक दलों ने 2019 से अब तक किसी भी लोकसभा, विधानसभा या उपचुनाव में भाग नहीं लिया और कई मामलों में तो उनकी भौतिक उपस्थिति तक नहीं मिल सकी


📄 देशभर से जुटाई गई जानकारी, दलों को मिलेगा जवाब देने का मौका

इन 345 दलों की पहचान के बाद संबंधित राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य निर्वाचन अधिकारियों को निर्देश दिए गए हैं कि वे इन दलों को कारण बताओ नोटिस जारी करें और उन्हें अपनी स्थिति स्पष्ट करने का एक अंतिम अवसर दें।

चुनाव आयोग ने स्पष्ट किया है कि यह कार्यवाही पारदर्शी प्रक्रिया के तहत होगी और किसी भी दल को अनुचित तरीके से सूची से बाहर नहीं किया जाएगा।


📊 2,800 से अधिक गैर-मान्यता प्राप्त दल, सुधार की आवश्यकता

भारत में इस समय 2800 से अधिक पंजीकृत गैर-मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल हैं।
इनमें से कई वर्षों से निष्क्रिय हैं और न तो चुनावी मैदान में सक्रिय हैं और न ही किसी वैध राजनीतिक प्रक्रिया का हिस्सा बन रहे हैं।
आयोग का यह निर्णय भारतीय लोकतंत्र को मजबूत करने और पंजीकरण प्रणाली को दुरुस्त करने की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है।


🔍 पारदर्शिता, जवाबदेही और लोकतंत्र की मजबूती की ओर कदम

इस अभियान से उन तथाकथित राजनीतिक दलों पर भी लगाम लगेगी जो सिर्फ पंजीकरण का लाभ उठाकर कर मुक्त चंदा इकट्ठा करने या किसी अन्य स्वार्थ के लिए अस्तित्व में रहते हैं।

विशेषज्ञों के अनुसार, यह कदम न केवल राजनीतिक पंजीकरण प्रणाली की शुद्धता बनाएगा, बल्कि भविष्य में बेहतर चुनावी मानक स्थापित करने में भी सहायक होगा।


🧾 क्यों जरूरी था यह फैसला?

  • छह साल तक कोई चुनाव नहीं लड़ने वाले दल लोकतंत्र के सक्रिय अंग नहीं कहे जा सकते।

  • फर्जी राजनीतिक दलों के नाम पर कर चोरी और चंदा दुरुपयोग की शिकायतें बढ़ी थीं।

  • चुनावी प्रक्रिया में पारदर्शिता के लिए निष्क्रिय दलों की सफाई आवश्यक है।

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