रथयात्रा से पहले क्यों आता है भगवान जगन्नाथ को बुखार? जानिए ‘अनसरा’ परंपरा का पौराणिक रहस्य

पुरी जगन्नाथ मंदिर की अद्भुत परंपरा: देवता जो बीमार होते हैं, करवट बदलते हैं और फिर नवयौवन में करते हैं दर्शन

नई दिल्ली। भारत के सबसे भव्य तीर्थों में शामिल ओडिशा के पुरी स्थित श्री जगन्नाथ मंदिर की परंपराएं जितनी दिव्य हैं, उतनी ही रहस्यमयी और भावनात्मक भी। हर वर्ष रथयात्रा से ठीक पहले एक ऐसा आयोजन होता है जो भगवान को मानव रूप में अनुभव करने की एक अद्भुत झलक देता है। यह आयोजन है—‘अनसरा’

इस दौरान भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा बीमार पड़ जाते हैं, उन्हें बुखार आता है, औषधियां दी जाती हैं और गर्भगृह को आम भक्तों के लिए बंद कर दिया जाता है।



🕉️ बुखार क्यों आता है भगवान जगन्नाथ को?

हर वर्ष आषाढ़ मास की स्नान पूर्णिमा को भगवान जगन्नाथ सहित तीनों भाई-बहनों को 108 कलशों के शीतल जल से स्नान कराया जाता है। इस महा-स्नान को ‘स्नान यात्रा’ कहा जाता है।

मान्यता है कि इस ठंडे जल स्नान के बाद तीनों देवी-देवताओं को बुखार हो जाता है। इसी कारण उन्हें आम भक्तों से दूर लाकर मंदिर के भीतर बने ‘अनसरा गृह’ में विश्राम कराया जाता है।


🩺 भगवान का इलाज और सेवा व्यवस्था

  • अनसरा काल लगभग 15 दिनों का होता है, जिसमें भगवान विश्राम करते हैं।

  • इस दौरान ‘दासमुख वैद्य’ नामक राज वैद्य भगवान के उपचार के लिए 17 प्रकार की औषधियों से बना काढ़ा (नबटोल) तैयार करते हैं।

  • भगवान को हल्का, सुपाच्य भोजन दिया जाता है।

  • भगवान की सेवा में लगे सेवक भी नियमपूर्वक उपवास रखते हैं और औषधीय प्रक्रिया का पालन करते हैं।


🚪 क्यों बंद हो जाता है गर्भगृह?

अनसरा काल में भगवान को सार्वजनिक दर्शन से दूर रखा जाता है।

  • गर्भगृह को बंद कर दिया जाता है।

  • श्रद्धालु केवल ‘पत्ता चित्र’ (परंपरागत चित्रकलाओं) के माध्यम से भगवान के दर्शन कर पाते हैं।


🛏️ भगवान करवट क्यों बदलते हैं?

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान केवल विश्राम नहीं करते, बल्कि करवट भी बदलते हैं।

  • मूर्तियों को विश्राम अवस्था में रखा जाता है।

  • सेवक समय-समय पर उनकी करवट बदलते हैं, जिससे यह प्रतीक बने कि भगवान भी मानवों की तरह व्यवहार करते हैं।


🌸 नवयौवन दर्शन और रथयात्रा की शुरुआत

अनसरा की समाप्ति पर, भगवान ‘नवयौवन’ स्वरूप में प्रकट होते हैं।

  • इस दिन को ‘नवयौवन दर्शन’ कहा जाता है।

  • इसके अगले ही दिन विशाल रथयात्रा की शुरुआत होती है, जिसमें भगवान तीन विशाल रथों पर बैठकर गुंडिचा मंदिर की ओर प्रस्थान करते हैं।


📿 पौराणिक भावार्थ: भगवान जो हमारे जैसे हैं

पुरी का यह आयोजन भक्तों को यह भाव देता है कि—

भगवान केवल पूज्य नहीं, हमारे अपने हैं। वे भी हमारे सुख-दुख को जीते हैं, बीमार होते हैं, उपचार लेते हैं, फिर नवजीवन में लौटते हैं।

डिस्क्लेमर: यह समाचार धार्मिक मान्यता व परंपरा पर आधारित है। aksharsatta.page इसकी पुष्टि नहीं करता। 

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