जबलपुर। रचनात्मक विचारों और संवेदनशील अभिव्यक्तियों से ओतप्रोत 'रचना परिधि के चार सत्र' साहित्यिक आयोजन की शुरुआत 28 जून को जबलपुर में ‘पहल’ और ‘अन्विति’ की साझा प्रस्तुति के अंतर्गत दो सत्रों के साथ प्रभावी ढंग से हुई। यह आयोजन शहर को एक बार फिर साहित्यिक ऊर्जा और सृजनशील संवाद का केंद्र बना रहा।
प्रथम सत्र रानी दुर्गावती संग्रहालय के गरिमामय प्रांगण में आरंभ हुआ, जिसमें समकालीन काव्य की गूंज ने श्रोताओं को भीतर तक आंदोलित किया। मंच पर अलंकृति श्रीवास्तव, नरेश जैन, जितेन्द्र भार्गव, कुन्दन सिद्धार्थ, शैली दीवान और विवेक चतुर्वेदी जैसे विशिष्ट कवियों ने अपनी रचनाओं के माध्यम से जीवन के सूक्ष्म अनुभवों और सामाजिक चेतना को प्रभावशाली स्वर प्रदान किया। सत्र का संयोजन भी कवि विवेक चतुर्वेदी ने ही आत्मीयता के साथ निभाया।
द्वितीय सत्र की सांध्यवेला कहानी पाठ के नाम रही, जहां प्रतिष्ठित कथाकार श्रद्धा श्रीवास्तव, मनोज पाण्डेय और तरुण भटनागर ने अपनी कथाओं की मार्मिक प्रस्तुतियों से उपस्थितजनों को गहन चिंतन में डुबो दिया। इस अवसर पर जयपुर से पधारे प्रख्यात आलोचक-संपादक सूरज पालीवाल ने 'नई सदी की कहानी का कथ्य रूप' विषय पर अपने विचार रखते हुए समकालीन कहानी के बदलते स्वरूप, संवेदना और भाषा की बारीकियों को बखूबी उकेरा। इस सत्र का संचालन कवि-आलोचक राजीव कुमार शुक्ल ने गंभीरता और गरिमा के साथ किया।
‘अन्विति’ के संपादक व वरिष्ठ कथाकार राजेन्द्र दानी ने साहित्यप्रेमियों से इस बहुआयामी आयोजन में उपस्थिति दर्ज कराकर साहित्य के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दर्शाने की आत्मीय अपील की है।
'रचना परिधि के चार सत्र' के अंतर्गत कविता और कहानी पाठ ने बिखेरा रचनात्मक जादू
'पहल' और 'अन्विति' की साहित्यिक साझेदारी के तहत आयोजित "रचना परिधि के चार सत्र" शृंखला में 29 जून को दो विशिष्ट सत्रों ने साहित्य-प्रेमियों को शब्दों की गहराइयों में डुबो दिया।
दिन का तृतीय सत्र, रानी दुर्गावती संग्रहालय की प्राचीन कलात्मक छाया में संपन्न हुआ, जिसमें समकालीन कविता की विशिष्ट आभा से जबलपुर जगमगा उठा। इस सत्र में तरुण गुहा नियोगी, मनोहर बिल्लौरे, डॉ. दीप्ति पटेल, हनुमंत किशोर, राजीव कुमार शुक्ल, बाबुषा कोहली और भारती शुक्ल जैसे प्रख्यात कवियों ने अपनी कविताओं के माध्यम से श्रोताओं को अंतर्मन की यात्रा पर ले जाया। हर रचना, शब्दों से नहीं बल्कि संवेदनाओं से बुनी हुई प्रतीत हुई। संचालन का भार कवियित्री भारती वत्स ने पूरी गरिमा और संजीदगी के साथ निभाया।
इसके पश्चात् चौथा सत्र, कथा-पाठ का, अपनी वैचारिक तीव्रता और कथ्य की विविधता के कारण विशिष्ट बन गया। प्रसिद्ध कथाकार विमल चन्द्र पाण्डेय ने अपनी बहुचर्चित कहानी ऊब महासागर सुनाई, जो सामाजिक यथार्थ की अतल गहराइयों को छूती है। श्री शिवेन्द्र ने ताजमहल, माउंटमैन, मजनू, शिखण्डी, अनारकली और भीष्म पितामह जैसी लघुकथाओं से विचारों का तूफान खड़ा किया। वहीं शैली बक्सी खड़खोतकर ने अपनी कहानी उड़ चलूं तुझ संग... के जरिए आत्मा को छू जाने वाली संवेदना रची। इस अवसर पर उपस्थित वरिष्ठ समालोचक वैभव सिंह ने "कहानी का समकाल और राजनैतिक चेतना" विषय पर अपनी विश्लेषणात्मक दृष्टि से विमर्श को नया आयाम दिया। सत्र का संयोजन कथाकार श्रद्धा श्रीवास्तव की मर्मज्ञ उपस्थिति में संयत रूप से सम्पन्न हुआ।
कला वीथिका की दीवारें भी साहित्यिक सौंदर्य से पीछे नहीं रहीं — वरिष्ठ चित्रकार अवधेश बाजपेयी के चित्रों ने अपनी मौन भाषा में रचनात्मकता की अनूठी कथा कही, जिन्हें दर्शकों की मौन विस्मय और प्रशंसा प्राप्त हुई।
इस विशिष्ट अवसर पर 'अन्विति' के संपादक एवं वरिष्ठ कथाकार श्री राजेन्द्र दानी, तरुण भटनागर, आलोचक-कवि राजीव शुक्ल, हिमांशु राय, कवि नरेश जैन और मुकुल यादव की उपस्थिति ने आयोजन की गरिमा में चार चांद लगा दिए।
यह आयोजन न केवल रचनाशीलता का उत्सव था, बल्कि यह समय और संवेदना के बीच पुल बनाता हुआ साहित्यिक संवाद का जीवंत उदाहरण भी सिद्ध हुआ।
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