मध्यप्रदेश के पत्रकारों को सुप्रीम कोर्ट से मिली अंतरिम राहत, गिरफ्तारी पर रोक

नई दिल्ली। भिंड जिले में कथित पुलिस उत्पीड़न और जान के खतरे की आशंका के बीच पत्रकारिता की आज़ादी से जुड़ा एक बड़ा फैसला सामने आया है। उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को मध्यप्रदेश के दो पत्रकारों — शशिकांत जाटव और अमरकांत सिंह चौहान — को गिरफ्तारी से अंतरिम राहत देते हुए उन्हें दो सप्ताह के भीतर मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय में याचिका दाखिल करने की अनुमति दी है।


न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा और न्यायमूर्ति मनमोहन की अवकाशकालीन पीठ ने स्पष्ट किया कि वह इस समय याचिका की अन्य मांगों पर विचार नहीं कर रही है, लेकिन गंभीर आरोपों को ध्यान में रखते हुए गिरफ्तारी पर रोक आवश्यक मानी गई। पीठ ने कहा, "हम याचिका पर विचार नहीं कर रहे हैं, लेकिन आरोपों को देखते हुए याचिकाकर्ताओं को दो सप्ताह में मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय जाने की अनुमति देते हैं। तब तक उन्हें गिरफ्तार नहीं किया जाएगा।"

रेत माफिया पर रिपोर्टिंग बना संकट का कारण?

याचिकाकर्ताओं के अनुसार, उन्होंने मध्यप्रदेश में अवैध रेत खनन को लेकर लगातार रिपोर्टिंग की थी, जिससे नाराज कुछ पुलिस अधिकारी, खासकर भिंड के पुलिस अधीक्षक असित यादव और उनकी टीम, उन पर हमलावर हो गई। उन्होंने आरोप लगाया कि 1 मई को उन्हें पुलिस अधीक्षक कार्यालय में ही हिरासत में लेकर जातीय दुर्व्यवहार करते हुए पीटा गया और जान से मारने की धमकियां भी दी गईं।

दिल्ली में ली शरण, प्रेस क्लब ऑफ इंडिया भी आया समर्थन में

पत्रकारों के वकील ने सर्वोच्च न्यायालय को बताया कि दोनों पत्रकार जान बचाने के लिए दिल्ली में शरण लेने को मजबूर हुए हैं। उन्होंने अदालत को यह भी जानकारी दी कि प्रेस क्लब ऑफ इंडिया ने इस हमले की कड़ी निंदा की है और पत्रकारों की सुरक्षा को लेकर गंभीर चिंता जताई है।

उच्च न्यायालय क्यों नहीं गए?

जब पीठ ने पूछा कि याचिकाकर्ता सीधे उच्च न्यायालय क्यों नहीं गए, तो वकील ने जवाब दिया कि "यह उन दुर्लभ मामलों में से एक है जहां याचिकाकर्ता साधनहीन हैं और उन्हें तत्काल संरक्षण की आवश्यकता थी।"

पत्रकारिता की स्वतंत्रता पर गंभीर सवाल

यह मामला सिर्फ दो पत्रकारों की गिरफ्तारी का नहीं है, बल्कि भारत में स्वतंत्र पत्रकारिता और प्रेस की सुरक्षा को लेकर एक बड़ा संकेत देता है। यदि रेत माफिया या अवैध गतिविधियों के खिलाफ आवाज़ उठाने वालों को पुलिसिया दमन का सामना करना पड़े, तो यह लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर खतरे की घंटी है।

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