जन्मदिवस विशेष: पंचम दा की धुनों में आज भी धड़कता है संगीत का जादू

आर.डी. बर्मन के जन्मदिवस (27 जून) पर विशेष रिपोर्ट

मुंबई। भारतीय फिल्म संगीत जगत में एक ऐसा नाम, जिसकी धुनों ने एक पूरी पीढ़ी के दिलों को धड़कना सिखाया — वह नाम है राहुल देव बर्मन, जिन्हें हम सब पंचम दा के नाम से जानते हैं। 27 जून 1939 को कोलकाता में जन्मे आर.डी. बर्मन ने अपनी विरासत में संगीत पाया और अपनी प्रतिभा से उसे अमर बना दिया।



पंचम दा का संगीत कभी एक शैली में नहीं बंधा। उन्होंने जब भी सुरों को छेड़ा, तो उनमें नवाचार की गूंज और जादुई असर दिखा। चाहे वह “ओ हसीना जुल्फों वाली” जैसा थिरकता गीत हो या “तेरे बिना ज़िंदगी से कोई शिकवा” जैसा सजीव दर्द, उनके हर कम्पोज़िशन ने भावनाओं को छूने की ताकत रखी।

🎶 संघर्ष से सफलता तक

पंचम दा ने अपने पिता, महान संगीतकार एस.डी. बर्मन से संगीत की शिक्षा ली और बचपन से ही इस क्षेत्र में सक्रिय हो गए। उन्होंने फंटूश (1956) में बाल अवस्था में बनाई गई धुन ‘ए मेरी टोपी पलट के आ’ से अपनी प्रतिभा का परिचय दिया।

हालांकि बतौर स्वतंत्र संगीतकार उनकी पहली फिल्म छोटे नवाब (1961) अपेक्षित पहचान नहीं दिला सकी, लेकिन तीसरी मंजिल (1966) के गानों ने उन्हें एक नई ऊंचाई दी। नासिर हुसैन के साथ उनका संगीतमय रिश्ता इतना मजबूत हुआ कि अगले दो दशकों तक वे हिट संगीत की गारंटी बन गए।

🌟 एक दशक, कई शिखर

1970 और 80 के दशक को आर.डी. बर्मन का दशक कहा जाए तो गलत नहीं होगा। सीता और गीता, मेरे जीवन साथी, जवानी दीवानी, आंधी, शोले, खुशबू, परिचय, हम किसी से कम नहीं, यादों की बारात जैसी फिल्मों का संगीत आज भी हर उम्र के लोगों की जुबां पर रहता है।

उनका प्रयोगधर्मी रवैया खासकर तब सामने आया जब उन्होंने पश्चिमी वाद्य यंत्रों को भारतीय भावनाओं के साथ जोड़ते हुए अनोखी धुनें रचीं। इसमें उनका साथ दिया पार्श्वगायिका आशा भोंसले ने, जो बाद में उनकी जीवनसंगिनी भी बनीं।

🎤 गायक, अभिनेता और प्रयोगधर्मी संगीतज्ञ

आर.डी. बर्मन ने सिर्फ संगीत दिया ही नहीं, बल्कि कई फिल्मों में अपनी आवाज भी दी और कभी-कभार परदे पर अभिनय भी किया। भूत बंगला और प्यार का मौसम में उनकी अदाकारी देखने को मिली। वहीं गायक के रूप में महबूबा महबूबा और दम मारो दम जैसे गीतों में उनकी अलग ही शैली नजर आई।

🏆 सम्मान और विरासत

अपने चार दशक लंबे सिने करियर में आर.डी. बर्मन ने लगभग 300 से अधिक हिंदी फिल्मों में संगीत दिया। इसके अलावा उन्होंने बंगाली, मराठी, तमिल, तेलुगू और उड़िया फिल्मों के लिए भी संगीत रचा। उन्हें फिल्मफेयर अवॉर्ड तीन बार — सनम तेरी कसम, मासूम और 1942: ए लव स्टोरी के लिए मिला।

1980 के दशक में कुछ असफलताओं ने उन्हें हाशिए पर ला दिया, लेकिन 1942: ए लव स्टोरी जैसी कृति से उन्होंने अपने अंतिम दिनों में भी साबित किया कि असली कलाकार कभी खत्म नहीं होता।

🌍 विश्व मंच पर पहचान

पंचम दा ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी पहचान बनाई। अमेरिकी संगीतकार जोस फ्लोरेस के साथ उनका एल्बम पंटेरा दर्शाता है कि वे कितने आधुनिक सोच वाले संगीतकार थे।

🕯️ पंचम दा अमर हैं

4 जनवरी 1994 को पंचम दा भले ही इस दुनिया को अलविदा कह गए, लेकिन उनकी धुनें आज भी ज़िंदा हैं — रेडियो पर, रिंगटोन में, फिल्मों के रीमेक में और करोड़ों दिलों की धड़कनों में।

पंचम दा का संगीत आज भी प्रेरणा है, ऊर्जा है और सच्चा संगीत प्रेमियों के लिए एक श्रद्धा है।


📌 क्या आप जानते हैं?

  • तीसरी मंजिल की धुन पहले किसी और को देनी थी, लेकिन जब शम्मी कपूर ने आर.डी. बर्मन का म्यूजिक सुना, तो उन्होंने नासिर हुसैन को फिल्म उन्हीं के साथ करने पर मजबूर कर दिया।

  • पंचम दा ने होठों से गिलास पर रगड़ कर भी धुनें बनाई थीं!

🎧 आज उनके जन्मदिवस पर हम उन्हें सलाम करते हैं और उनकी धुनों के साथ एक बार फिर जुड़ते हैं...
“पंचम दा, आप जिंदा हैं हर सुर में।”


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