सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद पीड़ित को मिला मुआवजा, 28 दिन देर से हुई रिहाई
नई दिल्ली। संविधान में प्रदत्त व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन उत्तर प्रदेश सरकार को भारी पड़ा। उच्चतम न्यायालय ने जमानत के बावजूद जेल में 28 दिनों तक बंद एक व्यक्ति की रिहाई में देरी के मामले में राज्य सरकार को पांच लाख रुपये मुआवजा अदा करने का आदेश दिया, जिसे अब पीड़ित को दे दिया गया है।
क्या है मामला?
उच्चतम न्यायालय ने 29 अप्रैल को एक आरोपी को जमानत दी थी, लेकिन इसके बावजूद उसे गाजियाबाद जिला जेल से 24 जून को रिहा किया गया — यानी पूरे 28 दिन की देरी से। शीर्ष अदालत ने इस देरी को गंभीरता से लेते हुए 25 जून को उत्तर प्रदेश सरकार को फटकार लगाई और पीड़ित को पांच लाख रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया।
न्यायिक कार्यवाही का विवरण
शुक्रवार को न्यायमूर्ति के.वी. विश्वनाथन और न्यायमूर्ति एन. कोटिस्वर सिंह की पीठ के समक्ष उत्तर प्रदेश सरकार के अधिवक्ता ने सूचित किया कि अदालती आदेश का पालन करते हुए मुआवजा राशि पीड़ित को सौंप दी गई है। पीड़ित के अधिवक्ता ने भी इस मुआवजे की प्राप्ति की पुष्टि अदालत के समक्ष की।
सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी
शीर्ष अदालत ने टिप्पणी की, "स्वतंत्रता संविधान के तहत गारंटीकृत एक बहुत ही कीमती और महत्वपूर्ण अधिकार है।" अदालत ने स्पष्ट किया कि व्यक्ति को मामूली गैर-मुद्दे के चलते 28 दिनों तक अपनी आजादी से वंचित रहना पड़ा, जो न्याय की मूल भावना के खिलाफ है।
किन धाराओं में दर्ज था मामला?
आरोपी पर भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 366 (महिला के अपहरण या शादी के लिए मजबूर करने का आरोप) और उत्तर प्रदेश धर्मांतरण प्रतिषेध अधिनियम, 2021 की धारा 3 और 5 के तहत मामला दर्ज किया गया था। इसमें धर्मांतरण के लिए बल, धोखाधड़ी, प्रलोभन आदि को गैरकानूनी ठहराया गया है।
निचली अदालत की भूमिका भी सवालों के घेरे में
हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने आरोपी को 29 अप्रैल को जमानत दे दी थी, लेकिन गाजियाबाद की निचली अदालत ने 27 मई को रिहाई आदेश जारी किया, और तब भी उसे रिहा होने में लगभग एक महीना और लग गया।
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