हिरासत में युवक की मौत पर भड़की मद्रास हाईकोर्ट, पूछा – "क्या वह आतंकवादी था?"

चेन्नई, 30 जून 2025। तमिलनाडु के शिवगंगा जिले में एक युवक की पुलिस हिरासत में हुई मौत को लेकर मद्रास उच्च न्यायालय की मदुरै पीठ ने सोमवार को राज्य पुलिस प्रशासन को कड़ी फटकार लगाई है। न्यायालय ने तीखे शब्दों में पूछा – "क्या वह आतंकवादी था, जो पुलिस ने ऐसी क्रूरता दिखाई?" इस मामले को लेकर न्यायपालिका और मानवाधिकार संगठनों में आक्रोश फैल गया है।


🛑 क्या है मामला?

शिवगंगा जिले के मदापुरम स्थित भद्रकाली अम्मन मंदिर में सुरक्षा गार्ड के रूप में कार्यरत 27 वर्षीय अजित कुमार को आभूषण चोरी के संदेह में पुलिस की एक विशेष टीम ने पूछताछ के लिए हिरासत में लिया था। आरोप है कि उसे अवैध हिरासत में रखकर निरंतर शारीरिक प्रताड़ना दी गई, जिससे उसकी मौत हो गई।

पुलिस की यह कार्रवाई न सिर्फ कानून की अवहेलना है, बल्कि मानवाधिकारों का भी सीधा उल्लंघन है। इस दुखद घटना के बाद स्थानीय जनता में भारी आक्रोश है और राज्य सरकार पर पुलिसिया बर्बरता के खिलाफ कार्रवाई की मांग तेज हो गई है।


⚖️ उच्च न्यायालय ने जताई नाराजगी

मदुरै पीठ ने मामले का संज्ञान लेते हुए तीखा रुख अपनाया और राज्य पुलिस से जवाब तलब किया।
न्यायाधीशों ने टिप्पणी करते हुए कहा

“क्या वह आतंकवादी था? एक मंदिर का गार्ड होने के नाते उसे इतनी अमानवीय यातना क्यों दी गई? क्या राज्य में कोई कानून व्यवस्था बची है?”

न्यायालय ने यह भी निर्देश दिया कि मजिस्ट्रेट जांच की निगरानी न्यायिक अधिकारियों द्वारा की जाए और किसी भी दोषी को बख्शा न जाए।


🚨 छह पुलिसकर्मी निलंबित, मजिस्ट्रेट जांच जारी

घटना की गंभीरता को देखते हुए तमिलनाडु पुलिस ने छह पुलिस अधिकारियों को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया है। इसके अलावा मामले की निष्पक्षता के लिए मजिस्ट्रेट जांच का आदेश दिया गया है।

हालांकि, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और पीड़ित परिवार का कहना है कि केवल निलंबन पर्याप्त नहीं है। वे हत्या का मामला दर्ज कर सीबीआई जांच की मांग कर रहे हैं।


📢 जन आक्रोश और राजनीतिक प्रतिक्रिया

मामले ने राज्यभर में राजनीतिक हलचल भी पैदा कर दी है। विपक्षी दलों ने इस घटना को राज्य सरकार की "पुलिस तानाशाही" का उदाहरण बताया है और विधानसभा में इस मुद्दे को उठाने का ऐलान किया है।

वहीं, मानवाधिकार संगठनों ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग से स्वतः संज्ञान लेकर जांच शुरू करने की मांग की है।


🔍 पृष्ठभूमि: हिरासत में मौत – एक बढ़ती हुई चिंता

भारत में हिरासत में मौतें कोई नई बात नहीं हैं, लेकिन हालिया वर्षों में ऐसी घटनाएं तेजी से बढ़ी हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की रिपोर्ट के अनुसार, हर साल दर्जनों लोग पुलिस हिरासत में अपनी जान गंवाते हैं, जिनमें से अधिकांश मामलों में पुलिस की बर्बरता या लापरवाही सामने आती है।

अजित कुमार की मौत न केवल एक व्यक्ति की मौत है, बल्कि यह कानून के रखवालों की बर्बरता पर गहरा प्रश्नचिह्न भी है। मद्रास हाईकोर्ट की तीखी टिप्पणी यह संकेत देती है कि अब पुलिस जवाबदेही से नहीं बच सकती
जरूरत है कि इस मामले की निष्पक्ष और पारदर्शी जांच हो, ताकि पीड़ित परिवार को न्याय मिल सके और भविष्य में किसी निर्दोष की जान इस तरह न जाए।

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