नई दिल्ली। दिल्ली उच्च न्यायालय ने शादी का झूठा वादा कर 53 वर्षीय महिला से बलात्कार करने के आरोपी 49 वर्षीय व्यक्ति की जमानत याचिका खारिज कर दी है। न्यायमूर्ति स्वर्ण कांत शर्मा ने 4 जुलाई को दिए अपने आदेश में स्पष्ट रूप से कहा कि प्रथम दृष्टया यह मामला गंभीर प्रकृति का प्रतीत होता है और आरोपी को जमानत देने का कोई उचित आधार नहीं है।
अदालत ने कहा कि रिकॉर्ड में मौजूद व्हाट्सएप चैट्स, गवाहों की अभी तक हुई जांच और आरोपी द्वारा खुद को झूठी पहचान में प्रस्तुत करना, इस मामले की गंभीरता को रेखांकित करता है। आरोपी ने खुद को कभी नारकोटिक्स विभाग का डीसीपी, तो कभी नौसेना का पूर्व कैप्टन बताया था, और यहां तक कि उसने खुद को एनएसजी कमांडो के रूप में भी पेश किया जो 2008 के मुंबई हमलों में शामिल रहा।
महिला को दिया गया था झूठा आश्वासन
पीड़ित महिला ने आरोप लगाया कि उसकी मुलाकात आरोपी से एक बाइक राइडर्स ग्रुप के जरिए हुई थी, जहां आरोपी एडमिन था। उसने पहले खुद को वरिष्ठ सरकारी अधिकारी बताया और बाद में महिला से नजदीकियां बढ़ाई। महिला के अनुसार, आरोपी ने शादी का झांसा देकर उसके साथ शारीरिक संबंध बनाए। जब महिला ने शादी के लिए दबाव डाला, तो आरोपी ने तलाक की फर्जी याचिका व्हाट्सएप पर भेजी और जल्द ही शादी का वादा किया।
महिला ने दावा किया कि जब उसने सच्चाई जाननी चाही और दबाव बनाया, तो आरोपी ने उसकी निजी तस्वीरें सार्वजनिक करने की धमकी दी। इसके बाद पीड़िता ने साहस जुटाकर पुलिस में शिकायत दर्ज कराई।
आरोपी ने जताई सहमति की बात, कोर्ट ने खारिज किया दावा
आरोपी की ओर से जमानत की मांग करते हुए यह तर्क दिया गया कि संबंध आपसी सहमति से था, और महिला परिपक्व एवं समझदार है। लेकिन न्यायालय ने आरोपी के इन दावों को खारिज करते हुए कहा कि महिला की सहमति धोखे और झूठे वादों पर आधारित थी, अतः यह वैध नहीं मानी जा सकती।
कोर्ट ने यह भी माना कि तलाक की प्रक्रिया को लेकर आरोपी ने जालसाजी की और फर्जी दस्तावेज प्रस्तुत किए। इसके अलावा, स्वयं को नौसेना अधिकारी और एनएसजी कमांडो बताना भी गंभीर धोखाधड़ी का संकेत है।
इस मामले में अदालत ने सख्त रुख अपनाते हुए आरोपी को जमानत देने से इनकार कर दिया है। अदालत ने साफ किया कि जब तक इस गंभीर मामले की सभी गवाहियों और सबूतों की पूरी तरह से जांच नहीं हो जाती, तब तक आरोपी को जमानत देना न्यायहित में नहीं है।
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