भूमि फर्जीवाड़ा कांड: प्रतिबंधित जमीन की अदला-बदली से प्रशासन हिला, तहसीलदार ने मांगी सात दिन में रिपोर्ट

लांजी, बालाघाट | 26 जुलाई 2025 — वर्षो से निष्क्रिय पड़ी प्रशासनिक मशीनरी अचानक सक्रिय हो गई है, जब ईडी और राज्य शासन द्वारा रोक लगाई गई जमीन की फर्जी रजिस्ट्री का परत-दर-परत खुलासा हुआ। तहसीलदार लांजी ने तत्कालिक प्रभाव से पटवारी और राजस्व निरीक्षक को जांच सौंपते हुए सात दिनों में विस्तृत रिपोर्ट तलब की है।

फर्जीवाड़े की बुनियाद बोलेगांव से

ग्राम बोलेगांव — जो कभी डबल मनी घोटाले के गढ़ के रूप में कुख्यात रहा — अब एक बार फिर खबरों में है। इस बार, कथित रूप से कोमिन पति धनराज आमाडारे ने उस जमीन को, जिस पर ईडी की सख्त पाबंदी थी, ग्राम बिसोनी की भूनेश्वरी बेदरे (पत्नी राजकुमार बेदरे) के नाम बेच डाली। यह संपूर्ण लेन-देन छल-छद्म और दस्तावेजी कूटनीति का परिणाम था।

नकली दस्तावेज़, असली साजिश

सूत्रधार नसीमुद्दीन खान ने इस खेल में अहम भूमिका निभाई। उसने न केवल पटवारी इंद्रपाल मड़ावी को भ्रामक विवरण देकर गुमराह किया, बल्कि सेवा प्रदाता चंद्रकांत किरनापुर के जरिये इच्छानुसार खसरा नक्शा तैयार कराया। असली जमीन की बजाय अन्य भूखंड की तस्वीरें दस्तावेजों में चिपका दी गईं, और शासन की आंखों में धूल झोंकने का यह नापाक मंसूबा सिरे चढ़ गया।

प्रशासनिक आंखों में धूल, कानून का मखौल

प्रतिबंधित भूमि की रजिस्ट्री करवाकर न सिर्फ कानूनी मर्यादा को तिरोहित किया गया, बल्कि उसकी जगह दूसरी भूमि की छवियां दस्तावेजों में चस्पा कर दी गईं — एक सुनियोजित भ्रमजाल बुनकर। यह दर्शाता है कि कैसे सत्ता से जुड़े कुछ लोग पूरे सरकारी तंत्र को कठपुतली बना कर अपने इशारों पर नचाते हैं।

शिकायतकर्ता की गंभीर आपत्तियाँ

विजय कुमार मिश्रा, जिन्होंने मामले की परतें खोलीं, का आरोप है कि कोमिन आमाडारे, भूनेश्वरी बेदरे, सेवा प्रदाता चंद्रकांत किरनापुर और गवाह नसीमुद्दीन खान ने मिलकर दस्तावेज़ों की कूट रचना कर ईडी एवं राज्य सरकार के आदेशों की घोर अवहेलना की। सबसे संदेहास्पद भूमिका पटवारी इंद्रपाल मड़ावी की बताई जा रही है, जिनकी निष्क्रियता या मिलीभगत पर गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं।

नक्शा बनवाने की सफाई में घिरे पटवारी

प्रश्नों के घेरे में आए पटवारी इंद्रपाल मड़ावी ने अपना बचाव करते हुए कहा कि उन्हें न तो रजिस्ट्री की कोई पूर्व सूचना दी गई थी और न ही विक्रय का कोई उल्लेख हुआ। नक्शा महज लोकसेवा केंद्र में शुल्क भुगतान हेतु मांगा गया था। उन्होंने यह भी कहा कि यदि भूमि विक्रय की जानकारी दी जाती, तो चारदीवारी नक्शे में इसका विशेष उल्लेख किया जाता।

फर्जीवाड़े का भू-खण्ड: तथ्यात्मक विवरण

घोटाले का केन्द्र रहा लांजी तहसील अंतर्गत हल्का नंबर 19/60 में स्थित खसरा नंबर 27/23 की 0.024 हेक्टेयर यानी कुल 240 वर्गमीटर भूमि — जिसका प्रशासनिक दृष्टि से विक्रय प्रतिबंधित था। फिर भी चुपके से दस्तावेजी घालमेल कर इस जमीन की रजिस्ट्री करवा दी गई, जो अब एक बड़े प्रशासनिक प्रश्नचिन्ह में तब्दील हो गई है।

यह प्रकरण महज एक ज़मीन की फर्ज़ी बिक्री नहीं, बल्कि शासन की संवेदनशीलता और पारदर्शिता पर गहरा आघात है। यदि दोषियों पर समय रहते कठोर कार्रवाई नहीं की गई, तो ऐसे मामले प्रशासन की विश्वसनीयता को लगातार निगलते रहेंगे।

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