न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने साफ कहा कि यह समस्या व्यक्तिगत विफलताओं की नहीं, बल्कि समूची शिक्षा व्यवस्था की ढहती नींव की निशानी है। अदालत ने राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि 2022 में 1,70,924 आत्महत्याओं में 13,044 छात्र शामिल थे, जबकि 2001 में यह संख्या 5,425 थी। यानी बीते दो दशकों में छात्र आत्महत्याएं तीन गुना से अधिक बढ़ चुकी हैं।
रिपोर्ट के मुताबिक, हर 100 आत्महत्याओं में औसतन 8 छात्र शामिल हैं। सबसे चिंताजनक तथ्य यह रहा कि 2,248 छात्र सिर्फ परीक्षा में असफल होने के कारण खुद को खत्म कर बैठे।
सर्वोच्च अदालत की तीखी टिप्पणी: यह आंकड़े नहीं, तंत्र की दरारें हैं
पीठ ने टिप्पणी की कि जब छात्र समाज के तिरस्कार, अभिभावकों के दबाव, असंवेदनशील शिक्षण संस्थानों और असहनीय मानसिक तनाव से ग्रस्त होकर आत्महत्या कर रहे हैं, तो यह साफ है कि शिक्षा तंत्र अपने दायित्व से विमुख हो चुका है।
छात्रों पर अत्यधिक शैक्षणिक बोझ, संस्थाओं की बेरुखी और मानसिक स्वास्थ्य के प्रति उदासीनता आज की सबसे भयावह त्रासदी बन चुकी है।
CBI जांच और दिशानिर्देश: अब शिक्षा संस्थानों को करना होगा पालन
यह दिशा-निर्देश सुप्रीम कोर्ट ने NEET की तैयारी कर रही एक 17 वर्षीय छात्रा की संदिग्ध मौत के मामले की सुनवाई के दौरान दिए। अदालत ने मामले की CBI से जांच कराने के आदेश दिए हैं। साथ ही 15 ऐसे दिशानिर्देश भी जारी किए हैं, जो तब तक लागू रहेंगे जब तक केंद्र सरकार इस संबंध में विधिवत कानून नहीं बनाती।
इन निर्देशों का पालन सभी सरकारी और निजी स्कूलों, कॉलेजों, कोचिंग संस्थानों, हॉस्टलों और यूनिवर्सिटीज़ को करना होगा — बोर्ड या संबद्धता कोई मायने नहीं रखेगी।
सुप्रीम कोर्ट के 15 दिशानिर्देशों की झलक
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मानसिक स्वास्थ्य नीति अनिवार्य – प्रत्येक संस्था को स्पष्ट और सुलभ मेंटल हेल्थ पॉलिसी बनाकर अपनी वेबसाइट और सूचना पटल पर प्रदर्शित करनी होगी।
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प्रशिक्षित काउंसलर की नियुक्ति – सभी शैक्षणिक संस्थानों में प्रमाणित काउंसलर या मनोचिकित्सक की उपस्थिति अनिवार्य होगी।
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छोटे बैच आधारित मार्गदर्शन – छात्रों को समर्पित मानसिक सहयोग मिल सके, इसके लिए छोटे बैचों में काउंसलिंग की व्यवस्था हो।
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संरक्षणात्मक उपाय – हॉस्टलों की छत, बालकनी, पंखे आदि पर सुरक्षा उपकरण लगाए जाएं ताकि आत्महत्या की घटनाओं की रोकथाम हो सके।
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प्रदर्शन आधारित विभाजन पर रोक – छात्रों को ग्रेड या मेरिट के आधार पर बैच में न बांटा जाए, खासतौर पर कोचिंग संस्थानों में।
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उत्पीड़न निरोधक तंत्र – जाति, लिंग, धर्म, यौन पहचान या दिव्यांगता के आधार पर भेदभाव या उत्पीड़न की शिकायत के लिए मजबूत प्रणाली विकसित हो।
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आपातकालीन सहायता व्यवस्था – हर संस्था और हॉस्टल में हेल्पलाइन नंबर, मेडिकल सहायता केंद्र स्पष्ट रूप से प्रदर्शित हों।
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स्टाफ ट्रेनिंग अनिवार्य – शिक्षक, हॉस्टल वार्डन और अन्य स्टाफ को वर्ष में दो बार मानसिक स्वास्थ्य पर प्रशिक्षण दिया जाए।
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माता-पिता के लिए जागरूकता कार्यक्रम – अभिभावकों को मानसिक स्वास्थ्य और छात्रों पर अनावश्यक दबाव न डालने हेतु प्रशिक्षण व जागरूकता सत्र कराए जाएं।
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संवेदनशील मामलों पर त्वरित कार्यवाही – मानसिक तनाव और आत्महत्या से जुड़े मामलों की तत्काल सुनवाई व समाधान हेतु विशेष समिति गठित हो।
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परीक्षा प्रणाली की समय-समय पर समीक्षा – परीक्षा और मूल्यांकन पैटर्न को मानव-केंद्रित और व्यावहारिक बनाने हेतु समीक्षा की जाती रहे।
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जागरूकता अभियान – मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी भ्रांतियों को दूर करने हेतु संस्थानों में जन-जागरूकता अभियान चलाए जाएं।
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वैकल्पिक मूल्यांकन प्रणाली – केवल लिखित परीक्षा पर निर्भरता को कम कर वैकल्पिक मूल्यांकन विधियां अपनाई जाएं।
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गोपनीय सहायता तंत्र – छात्र अपनी समस्याओं को बिना भय के साझा कर सकें, इसके लिए गोपनीय काउंसलिंग तंत्र विकसित किया जाए।
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समयबद्ध रिपोर्टिंग – सभी संस्थानों को समय-समय पर मेंटल हेल्थ से जुड़े आंकड़े और कार्यवाही रिपोर्ट उच्च प्राधिकरण को भेजनी होगी।
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