कविता : पूर्णिका
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डॉ. सलपनाथ यादव''प्रेम' एडवोकेट |
बहुत जमोगे।
हवा भरोगे।।
यहाँ वहाँ तुम ।
रोते फिरोगे ।।
इनकी उनकी ।
बात सुनोगे ।।
पूजो उनको ।
देव बनोगे ।।
रतन मिलेगा।
जमी खनोगे।।
कब तक उसको ।
दबा रखोगे ।।
बरसा पानी ।
दौड़ भगोगे ।।
'प्रेम' आप ही ।
नाम करोगे ।।
- डॉ. सलपनाथ यादव''प्रेम' एडवोकेट
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