पुलिस की बर्बरता पर मानवाधिकार आयोग का करारा तमाचा — दिव्यांग सीए को निर्वस्त्र करने वालों से वसूला जाएगा हर्जाना

अनुच्छेद 21 का घोर उल्लंघन, आयोग ने कहा – यह इंसानी गरिमा पर सीधा प्रहार

चंडीगढ़, 23 जुलाई 2025।
हरियाणा पुलिस की कथित क्रूरता पर मानवाधिकार आयोग ने एक कड़ा रुख अपनाते हुए स्पष्ट शब्दों में कहा है कि यह मामला केवल एक व्यक्ति के साथ अन्याय नहीं, बल्कि संविधान में प्रदत्त ‘जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता’ के मौलिक अधिकार का सीधा अपमान है।


फरीदाबाद निवासी दिव्यांग चार्टर्ड अकाउंटेंट अनिल ठाकुर के साथ थाने में जो कुछ घटित हुआ, उसने न केवल उनकी निजता को तार-तार किया, बल्कि उन्हें सामाजिक और मानसिक रूप से गहरे आघात में झोंक दिया। अब इस अमानवीय कृत्य की कीमत दोषी पुलिसकर्मियों को अपनी जेब से चुकानी होगी।

पुलिस थाने में अपमान की इंतिहा
24 मई 2021 को एक आपराधिक मामले में हिरासत में लिए गए अनिल ठाकुर को सरन थाने में अर्धनग्न कर न केवल प्रताड़ित किया गया, बल्कि उनके फोटो और वीडियो बनाकर उन्हें सोशल मीडिया पर वायरल कर दिया गया। शिकायत में कहा गया कि इस शर्मनाक हरकत के पीछे थाने के एएसआई जगवती और कांस्टेबल राकेश कुमार की सीधी भूमिका रही।

मानवाधिकार आयोग का ऐतिहासिक निर्णय
हरियाणा मानव अधिकार आयोग की तीन सदस्यीय पीठ — जिसमें अध्यक्ष न्यायमूर्ति ललित बत्रा, सदस्य कुलदीप जैन और दीप भाटिया शामिल थे — ने इस मामले की जांच रिपोर्ट के आधार पर स्पष्ट किया कि पुलिसकर्मियों की संलिप्तता संदेह से परे है।

आयोग ने दो टूक कहा, “यह हर उस संवैधानिक मूल्य का उल्लंघन है, जो किसी भी भारतीय नागरिक की गरिमा और स्वतंत्रता की रक्षा के लिए स्थापित किया गया है। कानून के तहत कोई भी व्यक्ति, चाहे वह किसी आरोप में पकड़ा गया हो, इस तरह के अपमान का पात्र नहीं हो सकता।”

50 हजार मुआवजा, दोषियों से वसूली के आदेश
आयोग ने पीड़ित को ₹50,000 की क्षतिपूर्ति की सिफारिश की है, जिसे हरियाणा सरकार तत्काल अदा करेगी और यह राशि बाद में दोनों दोषी पुलिसकर्मियों से समान रूप से वसूली जाएगी। आयोग के प्रवक्ता डॉ. पुनीत अरोड़ा ने जानकारी दी कि गृह विभाग को इस संबंध में तत्काल अनुपालन सुनिश्चित करने के निर्देश दिए गए हैं।

पीड़ित की प्रतिक्रिया — ‘गरिमा के लिए लड़ाई का अंत’
अनिल ठाकुर ने आयोग के फैसले पर संतोष जताते हुए कहा, “इंसाफ देर से मिला, लेकिन मिला। मेरी आत्मा और पहचान को जिस तरह कुचला गया था, अब उसकी कुछ भरपाई होती दिखाई दे रही है। कम से कम अब यह स्वीकार किया गया है कि मेरे साथ जो हुआ, वह गलत था।”

न्यायिक संकेत और जनसरोकार
यह फैसला न केवल एक पीड़ित को न्याय दिलाने की दिशा में मील का पत्थर साबित हुआ है, बल्कि यह संदेश भी देता है कि सत्ता और वर्दी में बैठे लोग भी कानून से ऊपर नहीं हैं। यह केस आने वाले समय में पुलिस सुधार और मानवाधिकार संरक्षण के क्षेत्र में एक निर्णायक मोड़ बन सकता है।


हरियाणा मानव अधिकार आयोग की यह सख्त कार्यवाही इस बात की गवाही है कि संविधानिक गरिमा और मानवाधिकार केवल शब्दों तक सीमित नहीं हैं, बल्कि उन पर आंच आने पर न्याय का चाबुक चलाया जाएगा — चाहे दोषी कोई भी हो, वर्दी में हो या कुर्सी पर।

Post a Comment

और नया पुराने