पुराने वाहनों पर ईंधन प्रतिबंध पर दिल्ली सरकार का यू-टर्न? लोगों में बढ़ता असंतोष, नीति पर उठे सवाल

नई दिल्ली। दिल्ली सरकार द्वारा पुराने वाहनों को पेट्रोल और डीजल देने पर प्रतिबंध लगाने के फैसले पर अब यू-टर्न के संकेत मिल रहे हैं। वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (CAQM) को भेजे गए एक पत्र में सरकार ने इस नीति को "तकनीकी रूप से अव्यवहारिक" करार दिया है। इस फैसले के विरोध में जनता की नाराजगी और बढ़ते दबाव के बीच सरकार अब अपने रुख में नरमी दिखा रही है।


🔴 क्या है विवाद का मूल कारण?

1 जुलाई 2025 से दिल्ली में 15 साल पुराने पेट्रोल वाहनों और 10 साल पुराने डीजल वाहनों पर ईंधन भराने पर रोक लगा दी गई थी। यह निर्णय पर्यावरण संरक्षण और वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के उद्देश्य से लिया गया था।

हालांकि, इस कदम से मध्यम वर्ग और कामकाजी वर्ग सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ। नतीजतन, राजनीतिक विवाद और जन असंतोष तेजी से बढ़ा।


🗣️ सरकार की सफाई: "जनता के साथ खड़ी है सरकार"

दिल्ली के पर्यावरण मंत्री मनजिंदर सिंह सिरसा ने प्रेस वार्ता में कहा,

हम जनता के हितों के खिलाफ कोई फैसला नहीं लेंगे। ईंधन प्रतिबंध को पूरे NCR क्षेत्र में लागू करने का सुझाव दिया है ताकि नीति में समानता हो।

🛑 नीति पर विपक्ष का प्रहार: 'फुलेरा की पंचायत जैसा शासन'

पूर्व उपमुख्यमंत्री और AAP नेता मनीष सिसोदिया ने इस फैसले को "मध्यम वर्ग पर हमला" बताया। उन्होंने कहा,

दिल्ली से 61 लाख पुराने वाहनों को हटाने का आदेश अत्याचारी है। यह शासन नहीं, फुलेरा की पंचायत है। यह नीति वाहन निर्माताओं, कबाड़ी कारोबारियों और नंबर प्लेट कंपनियों को लाभ पहुंचाने के लिए लाई गई है। 

सिसोदिया ने पूछा कि जो वाहन केवल 10,000 किमी चले हैं और अच्छी स्थिति में हैं, उन्हें क्यों बाहर किया जा रहा है?


⚠️ जुर्माना और जब्ती का डर

सरकार के आदेश के अनुसार, प्रतिबंधित वाहनों में ईंधन भरते पाए जाने पर:

  • चार पहिया वाहनों पर ₹10,000 जुर्माना

  • दो पहिया वाहनों पर ₹5,000 जुर्माना

  • साथ ही वाहन जप्त भी किया जा सकता है और ट्रकिंग शुल्क अलग से देना होगा।


🔍 विश्लेषण: नीति बनाम व्यवहारिकता

इस पूरे मामले से स्पष्ट है कि प्रदूषण नियंत्रण के नाम पर लिए गए फैसले की व्यवहारिकता पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं। जनता की जेब पर सीधा असर पड़ने के कारण यह नीति राजनीतिक हथियार बनती जा रही है।

सरकार के पत्र और बयान यह संकेत दे रहे हैं कि यह नीति अब शायद उसी रूप में लागू नहीं रह पाएगी, जैसा कि पहली जुलाई को घोषित की गई थी।

दिल्ली जैसे महानगर में प्रदूषण एक गंभीर समस्या है, लेकिन उसका समाधान जनविरोधी नीतियों के माध्यम से नहीं निकल सकता। सरकार को चाहिए कि वह पर्यावरण सुरक्षा और जनसुविधा के बीच संतुलन बनाते हुए पारदर्शी और व्यावहारिक समाधान प्रस्तुत करे। 

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