अभिभावकों की जेब पर भारी पड़ रही शिक्षा, प्रशासन बना मूकदर्शक
लांजी, बालाघाट। नया शैक्षणिक सत्र शुरू हो चुका है, लेकिन निजी स्कूलों में पहले से ही किताबों और यूनिफॉर्म के नाम पर कमीशनखोरी का खेल तेज हो गया है। स्कूल संचालक चुनिंदा दुकानदारों से सांठगांठ कर अभिभावकों को उन्हीं से महंगे दामों पर किताबें और यूनिफॉर्म खरीदने को मजबूर कर रहे हैं। यह सब खुलेआम हो रहा है, लेकिन शिक्षा विभाग और प्रशासनिक अमला चुप्पी साधे बैठा है।
एक दुकान से खरीदने की अनिवार्यता, विरोध करने से डरते हैं अभिभावक
अभिभावकों के अनुसार स्कूलों द्वारा कुछ खास दुकानों से यूनिफॉर्म व किताबें खरीदने का दबाव डाला जाता है। इन दुकानों पर सामान बाजार से दोगुने दामों पर बेचा जा रहा है। फिर भी अभिभावक बच्चों के भविष्य के डर से चुप रह जाते हैं।
कक्षावार तय की जा रही हैं दुकानें
जांच में यह बात भी सामने आई है कि कुछ स्कूलों ने अलग-अलग कक्षाओं के लिए अलग-अलग दुकानों को जिम्मेदारी दे रखी है। जैसे – कक्षा 1 से 5वीं तक की यूनिफॉर्म एक दुकान से, जबकि 6वीं से 8वीं तक की दूसरी दुकान से लेनी होती है। दुकानदार और स्कूल मिलकर इन यूनिफॉर्म पर मोटा मुनाफा कमा रहे हैं।
50 रुपए में सिलाई, 200 में बिक्री!
एक यूनिफॉर्म की सिलाई महज 50 रुपए में करवाई जा रही है और 150 से 200 रुपए प्रति मीटर वाले कपड़े को इस्तेमाल कर उससे बनी यूनिफॉर्म को अभिभावकों को 500 से 600 रुपए में बेचा जा रहा है। यानी तीन गुना तक की कमाई की जा रही है।
“जो ज्यादा कमीशन देगा, उसे मिलेगा ठेका”
इस पूरे सिस्टम में पारदर्शिता का नामोनिशान नहीं है। बताया जाता है कि जिन दुकानदारों से स्कूल संचालकों को ज्यादा कमीशन मिलता है, उन्हें ही टेंडर दे दिया जाता है। न तो खुली बोली होती है, न ही किसी तरह की जवाबदेही।
शिक्षा विभाग का जवाब, पर कार्रवाई नहीं
इस पूरे मामले पर जिला शिक्षा अधिकारी अश्विनी उपाध्याय ने कहा,
अभिभावक किसी भी दुकान से गणवेश खरीद सकते हैं। यदि कोई स्कूल जबरन किसी विशेष दुकान से खरीदने को बाध्य करता है तो उस पर कार्रवाई की जाएगी।
लेकिन सवाल यह है कि जब सबकुछ शिक्षा विभाग के संज्ञान में है, तो अब तक कोई ठोस कार्रवाई क्यों नहीं की गई?
📌 समाधान क्या है?
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शिक्षा विभाग को चाहिए कि वह हर स्कूल में किताबें व यूनिफॉर्म की बिक्री व्यवस्था की जांच करे।
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अभिभावकों को स्वतंत्र रूप से खरीदने की अनुमति दी जाए।
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स्कूलों के खर्च और कमीशन प्रणाली को सार्वजनिक किया जाए।
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किसी भी दुकान या ब्रांड को थोपने पर सख्त दंड की व्यवस्था हो।
👉 यदि आप भी ऐसे किसी स्कूल या दुकानदार से परेशान हैं, तो अपनी शिकायत जिला शिक्षा अधिकारी या संबंधित अधिकारी के पास दर्ज कराएं। आपकी जागरूकता ही इस कमीशन के खेल को बंद कर सकती है।
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- संपादक: दयाल चंद यादव (एमसीजे)
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