पढ़ाई छोड़कर झाड़ू-पोंछा और बगीचे की सिंचाई कर रहे छात्र: शासकीय माध्यमिक शाला सिरेगांव का चौंकाने वाला मामला

लांजी, बालाघाट | 12 अगस्त 2025। शिक्षा के मंदिर कहे जाने वाले स्कूलों में अगर बच्चों के हाथों में किताबों की जगह झाड़ू और पानी की पाइप हो, तो देश के भविष्य पर सवाल उठना लाजमी है। मध्य प्रदेश के बालाघाट जिले के लांजी विकासखंड में स्थित शासकीय माध्यमिक शाला सिरेगांव में छात्र पढ़ाई से ज्यादा सफाई और बागवानी के काम में व्यस्त नजर आ रहे हैं। यह स्थिति न केवल शिक्षा विभाग के दावों की पोल खोलती है, बल्कि बच्चों के अधिकारों का भी उल्लंघन कर रही है। अक्षर सत्ता की टीम ने इस मामले की पड़ताल की, जिसमें सामने आया कि सफाई कर्मी की कमी के चलते छात्रों से रोजाना झाड़ू-पोंछा और बगीचे की सिंचाई करवाई जा रही है।


स्कूल में सफाई का बोझ छात्रों पर

लांजी से करीब 10 किलोमीटर दूर सिरेगांव गांव में संचालित इस सरकारी स्कूल में छात्र सुबह-सुबह पढ़ाई शुरू करने की बजाय सफाई अभियान में जुट जाते हैं। अक्षर सत्ता की रिपोर्टर ने स्कूल का दौरा किया, जहां छात्र शिक्षकों की निगरानी में बगीचे में पौधों को पानी दे रहे थे। एक छात्र ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, "सर, यह हमारा रोज का काम है। पहले सफाई करते हैं, फिर क्लास में बैठते हैं।" वहीं, स्कूल के शिक्षक ने सफाई दी कि भृत्य (सफाई कर्मी) की नियुक्ति न होने के कारण छात्रों की मदद ली जाती है।

सरकार की ओर से सरकारी स्कूलों में बच्चों को मुफ्त किताबें, यूनिफॉर्म, जूते-मोजे, स्वेटर और मिड-डे मील जैसी सुविधाएं उपलब्ध कराई जा रही हैं। शिक्षा विभाग करोड़ों रुपये का बजट खर्च कर रहा है, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही बयां कर रही है। लांजी जनपद क्षेत्र की कई स्कूलों में भवन जर्जर हैं, कुछ जगह शिक्षक अनुपस्थित रहते हैं या नशे की हालत में आते हैं। कागजों पर तो सब कुछ ठीक दिखाया जाता है, लेकिन वास्तव में शिक्षा की गुणवत्ता प्रभावित हो रही है।

शिक्षा विभाग के आदेश की अनदेखी

यह मामला स्कूल शिक्षा विभाग के स्पष्ट आदेशों का खुला उल्लंघन है। मानवाधिकार आयोग की सिफारिश पर विभाग ने निर्देश जारी किया था कि सरकारी स्कूलों में छात्रों से झाड़ू-पोंछा, बर्तन धुलाई या कोई अन्य गैर-शैक्षणिक काम नहीं करवाया जाएगा। ऐसा करने पर प्रधानाध्यापक या प्राचार्य की वेतन वृद्धि रोकी जाएगी और पदोन्नति पर असर पड़ेगा। आदेश में साफ कहा गया है कि छात्रों से केवल पढ़ाई और खेलकूद से जुड़े काम ही करवाए जा सकते हैं। बावजूद इसके, लांजी क्षेत्र की कई स्कूलों में ऐसी प्रथा जारी है।

शिक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि इससे न केवल बच्चों का समय बर्बाद होता है, बल्कि बाल श्रम और शिक्षा अधिकार अधिनियम का भी उल्लंघन होता है। एक स्थानीय अभिभावक ने कहा, "हम बच्चे स्कूल पढ़ने भेजते हैं, न कि मजदूरी करने। सरकार को इस पर सख्त कार्रवाई करनी चाहिए।"

बीआरसी की प्रतिक्रिया: जांच का आश्वासन

मामले पर लांजी बीआरसी शिवेंद्र उके ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा, "विकासखंड में 'एक पेड़ मां के नाम' अभियान के तहत करीब 16 हजार पौधे लगाए गए हैं। हो सकता है कि छात्र उसी अभियान के पौधों को पानी दे रहे हों। लेकिन यह मुद्दा हमारे संज्ञान में आया है। स्कूल के शिक्षकों से जवाब मांगा जाएगा और आवश्यक कार्रवाई की जाएगी।"

सरकारी स्कूलों की चुनौतियां

लांजी विकासखंड में कई स्कूलों में बुनियादी सुविधाओं की कमी है। कुछ जगह बिजली और पानी नहीं है, तो कहीं छात्रों के बैठने की पर्याप्त व्यवस्था नहीं। सफाई के लिए अलग से कर्मचारी नियुक्त करने की मांग लंबे समय से उठ रही है, लेकिन क्रियान्वयन नहीं हो पा रहा। जिला मुख्यालय को भेजी जाने वाली रिपोर्टों में सब कुछ 'उत्तरोत्तर प्रगति' दिखाया जाता है, जिससे समस्या छिपी रहती है।

अक्षर सत्ता इस मुद्दे पर लगातार नजर रखेगा और शिक्षा विभाग से जवाबदेही की मांग करेगा। अगर आपके इलाके में भी ऐसी कोई समस्या है, तो हमें बताएं। हम सत्य की आवाज बनकर समाज में बदलाव लाने के लिए प्रतिबद्ध हैं।

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