नई दिल्ली, 23 अगस्त 2025 – सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण टिप्पणी में कहा कि विवाह के बाद पति या पत्नी यह दावा नहीं कर सकते कि वे अपने जीवनसाथी से पूरी तरह स्वतंत्र रहना चाहते हैं। जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस आर महादेवन की पीठ ने स्पष्ट किया कि यदि कोई व्यक्ति पूर्ण स्वतंत्रता की इच्छा रखता है, तो उसे विवाह जैसे बंधन में नहीं बंधना चाहिए।
मामले का विवरण
शीर्ष अदालत एक ऐसे दंपति के मामले की सुनवाई कर रही थी, जो एक-दूसरे से अलग रह रहे हैं और जिनके दो छोटे बच्चे हैं। सुनवाई के दौरान पीठ ने जोर देकर कहा कि बच्चों के हित को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। कोर्ट ने टिप्पणी की, “अगर यह दंपति फिर से एक साथ आ जाता है, तो हमें खुशी होगी, क्योंकि बच्चे बहुत छोटे हैं। उन्हें टूटा हुआ घर नहीं देखना चाहिए। बच्चों का क्या दोष है कि उनका परिवार बिखर जाए?”
महिला याचिकाकर्ता ने कोर्ट को बताया कि उनका पति मामले को सुलझाने के लिए तैयार नहीं है और उन्होंने अपनी कुछ कठिनाइयों का जिक्र किया। इस पर पीठ ने कहा, “हो सकता है आपको नौकरी मिले या न मिले, लेकिन पति को आपका और बच्चों का भरण-पोषण करना होगा।” कोर्ट ने पति को सुझाव दिया कि वे पत्नी और बच्चों के भरण-पोषण के लिए एक निश्चित राशि जमा करें।
स्वतंत्रता का दावा और कोर्ट की प्रतिक्रिया
जब पत्नी ने कहा कि वह किसी पर निर्भर नहीं रहना चाहती, तो जस्टिस नागरत्ना ने कड़े शब्दों में जवाब दिया, “आप यह नहीं कह सकतीं कि मैं किसी पर निर्भर नहीं रहना चाहती। फिर आपने शादी क्यों की? मैं शायद पुराने ख्यालों वाली हूं, लेकिन कोई भी पत्नी ऐसा नहीं कह सकती।”
कोर्ट ने पति को निर्देश दिया कि वे पत्नी और बच्चों के भरण-पोषण के लिए 5 लाख रुपये जमा करें, बिना उनके खिलाफ जारी आदेशों पर प्रतिकूल प्रभाव डाले। मामले की अगली सुनवाई 16 सितंबर 2025 को निर्धारित की गई है।
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